एक रूसी योगिनी ने हालीवुड में योग को लोकप्रिय बनाया
रूस और पश्चिमी देशों में आजकल योग बेहद लोकप्रिय है। योग भारत की प्राचीन आध्यात्मिक साधना पद्धति है। परमहंस योगानन्द जैसे महान गुरुओं के प्रयासों से पश्चिमी देशों के लोगों के बीच योग की लोकप्रियता बढ़ी थी। रूसी अभिनेत्री व नृत्यांगना येव्गेनिया पीटरसन (बाद में इन्द्रा देवी) की भी योग के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका रही। येव्गेनिया पीटरसन ने भारत, रूस और पश्चिमी देशों के बीच एक सेतु के रूप में काम किया।
येव्गेनिया पीटरसन का जन्म 1899 में लात्विया के रीगा शहर में हुआ था। उस समय लात्विया रूसी साम्राज्य का अंग था। येव्गेनिया पीटरसन के पिता स्वीडिश मूल के एक बैंक निदेशक थे, जबकि उनकी माँ रूसी मूल की एक कुलीन महिला थीं।
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जब येव्गेनिया नन्ही बच्ची थीं, उस समय रूसी ज़ारवंश का अवसानकाल चल रहा था। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं को पढ़ने के बाद येव्गेनिया पीटरसन के मन में भारत के लिए काफी दिलचस्पी पैदा हो गई थी। येव्गेनिया पीटरसन को मस्कवा के नाट्य विद्यालय में प्रवेश लेना था, किन्तु इसी बीच 1917 की बोल्शेविक क्रान्ति हो गई और उनके परिवार ने रूस छोड़कर जाने का फ़ैसला किया।
भारत में इन्द्रा देवी का जीवन
पिछली सदी के तीसरे दशक में येव्गेनिया पीटरसन बर्लिन में रहा करती थींं। वे अभिनेत्री व नृत्यांगना बन गईं थीं, लेकिन भारत के प्रति उनका अनुराग लगातार बढ़ता जा रहा था। 28 वर्ष की उम्र में उन्होंने भारत की यात्रा की। इस यात्रा का खर्च जुटाने के लिए उन्होंने अपने आभूषण तथा महँगे वस्त्र तक बेच दिए।
भारत में येव्गेनिया पीटरसन ने अपना नाम बदलकर ‘इन्द्रा देवी’ कर लिया। अभिनेत्री व नृत्यांगना एनाक्षी रामाराव से उन्होंने नृत्य की शिक्षा ली। जल्दी ही इन्द्रा देवी एक नृत्यांगना के रूप में सार्वजनिक तौर पर अपने कार्यक्रम पेश करने लगीं। उनका नृत्य इतना मनोहर होता था कि पण्डित नेहरू ने भी उनके नृत्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी।
इसके बाद इन्द्रा देवी ने भारत के नवोदित फ़िल्मोद्योग में अपना भाग्य आजमाया। उन्होंने ‘शेरे अरब’ नामक हिन्दी फ़िल्म में पृथ्वीराज कपूर के साथ काम किया। फ़िल्म खूब चली और इन्द्रा देवी रातोंरात लोगों के दिलों पर छा गईं।
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ऐसा लग रहा था कि एक अभिनेत्री के रूप में इन्द्रा देवी अब काफी ऊँचाई पर पहुँच जाएँगी, किन्तु उनकी क़िस्मत में कुछ और ही बदा था। इन्द्रा देवी के पति चेक गणराज्य (तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया) के राजनयिक थे। उनके पति ने मैसूर के महाराजा तथा महारानी से उनका परिचय करवाया। मैसूर के राजपरिवार के संरक्षण में एक योग पाठशाला चलती थी, जिसमें ‘आधुनिक योग के पिता’ के रूप में विख्यात तिरुमलई कृष्णमाचार्य शिक्षक थे।
तिरुमलई कृष्णमाचार्य बेल्लुर कृष्णमाचार सुन्दरराज आयंगर के भी गुरु थे। इन्द्रा देवी ने तिरुमलई कृष्णमाचार्य से योग सिखाने का अनुरोध किया। शुरू में तो कृष्णमाचार्य ने उनके स्त्री होने और यूरोपीय होने की बात कहते हुए उन्हें योग सिखाने से मना कर दिया। लेकिन जब मैसूर के महाराजा और महारानी ने भी उनसे अनुरोध किया तो कृष्णमाचार्य बेमन से इन्द्रा देवी को योग की शिक्षा देने पर सहमत हो गए।
इन्द्रा देवी एक वर्ष तक लगातार तिरुमलई कृष्णमाचार्य से योग सीखती रहीं। इस बीच उनका अपने गुरु से गहरा जुड़ाव हो गया। जब कृष्णमाचार्य को यह पता चला कि इन्द्रा देवी के पति को चीन भेजा जा रहा है, तो उन्होंने इन्द्रा देवी को योग शिक्षिका के रूप में प्रशिक्षित किया।
चीन में इन्द्रा देवी वहाँ के प्रतिष्ठित नागरिकों को योग की शिक्षा देने लगीं। उनसे योग सीखने वालों में श्रीमती च्यांग काईशेक भी शामिल थीं।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद इन्द्रा देवी भारत लौट आईं। उन्होंने ‘आपके लिए योग’ नामक एक पुस्तक लिखी। अमरीका में यह पुस्तक ‘अमरीकियों के लिए योग’ के नाम से प्रकाशित हुई।
हालीवुड में योग की गुरु
पति के असामयिक निधन के बाद इन्द्रा देवी अमरीका चली गईं और पूर्णकालिक योग शिक्षिका के रूप में काम करने लगीं। उन्होंने योग को पश्चिमी देशों के लोगों की ज़रूरतों के अनुरूप ढाला। अमरीका में लोग उन्हें माताजी कहकर पुकारते थे।
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जब यह बात फैली कि इन्द्रा देवी ग्रेटा गार्बो और ग्लोरिया स्वानसन जैसी प्रसिद्ध अभिनेत्रियों को योग सिखा रही हैं, तो हालीवुड के लोग उन्हें हाथों-हाथ लेने लगे। वायलिन वादक व आर्केस्ट्रा निर्देशक यहूदी मेनुहिन भी उनके शिष्यों में शामिल थे।
पिछली सदी के छठे और सातवें दशकों में हालीवुड सितारों के बीच योग बेहद लोकप्रिय हो गया था। इन्द्रा देवी ने लिखा है – अक्सर आम लोग उन लोगों की नकल करते हैं, जिन्हें वे बेहद पसन्द करते हैं। जब आम लोगों ने देखा कि ग्लोरिया स्वानसन, यहूदी मेनुहिन, पण्डित नेहरू और बेन गुरियन जैसे लोग योगाभ्यास करते हैं, तो भारी संख्या में आम लोग भी योग में दिलचस्पी लेने लगे। आज इतने साल बीत जाने के बाद भी उस स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। आजकल अनेक सफल उद्यमियों, खिलाड़ियों और नेताओं के मुँह से हमें अक्सर यह सुनने को मिलता है कि वे योगाभ्यास करते हैं और इससे उन्हें बहुत लाभ होता है। अक्सर आम लोग भी इन लोगों की यह बात सुनकर योग को अपना लेते हैं।
सोवियत संघ में योग
1960 में इन्द्रा देवी रूस वापस लौट आईं। हालाँकि उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध से ही रूस के अनेक प्रख्यात लोग योगाभ्यास करते आ रहे थे, लेकिन साम्यवादी विचारधारा वाले सोवियत नेता योग को सन्देह की दृष्टि से देखते थे और उन्होंने पिछली सदी के चौथे दशक में योग को अवैध घोषित कर दिया था। इन्द्रा देवी ने अब रूस में योग को वैध घोषित कराने के लिए प्रयास शुरू किए।
रूस में भारत के तत्कालीन राजदूत के० पी० एस० मेनन (कुमार पद्मनाभ शिवशंकर मेनन) इन्द्रा देवी के पुराने मित्र थे। मेनन ने इन्द्रा देवी और प्रधानमन्त्री अलिक्सेय कोसिगिन तथा विदेश मन्त्री अन्द्रेय ग्रोमिका सहित शीर्ष सोवियत नेताओं के बीच एक बैठक रखी।
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सोवियत नेता योग को लेकर क्या जानते और समझते थे, इसके बारे में इन्द्रा देवी ने एक अभिनन्दन समारोह में अपने उद्गार व्यक्त किए। इन्द्रा देवी ने बताया — फिर विदेश मन्त्री अन्द्रेय ग्रोमिका ने मेरे सम्मान में कहा — रोटी का यह टुकड़ा इन्द्रा देवी के नाम, जिन्होंने योग के बारे में हमारी आँखें खोल दी हैं।
दुर्भाग्य से रूस में योग को पूरी तरह से वैध घोषित होने में अनेक दशकों का समय लग लगा।
इन्द्रा देवी फिर 1990 में ही रूस वापस आईं। उस समय तक रूस में योग को वैध घोषित किया जा चुका था और रूस में योग की लोकप्रियता एक बार फिर से बढ़ रही थी। इन्द्रा देवी रूस के एक लोकप्रिय टेलीविजन कार्यक्रम में दिखाई दीं, जिसमें वह साड़ी पहनकर सोफे पर पद्मासन में बैठी हुई थीं। कहने वाले कहते हैं कि अगले दिन मस्कवा (मास्को) में उनका आटोग्राफ़ माँगने वालों की भारी भीड़ उनके पीछे-पीछे लगी रही।
मध्य और दक्षिण अमरीका में, जहाँ योग के बारे में कोई जानता तक नहीं था, योग का प्रचार-प्रसार करने के काम में इस रूसी योगिनी ने अपने जीवन के अनेक दशक खपा दिए।
1982 में वे अर्जेन्टीना चली गईं थीं और मृत्युपर्यन्त वहीं पर रहीं। 2002 में ब्यूनसआयर्स में 102 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपने पार्थिव शरीर त्याग दिया।
इन्द्रा देवी भारत से गहरा जुड़ाव रखती थीं। जीवन की अन्तिम साँस तक वह नियमित रूप से भारत की यात्रा पर आती रहीं।
अजय कमलाकरन ’रूस-भारत संवाद’ के एशिया सम्बन्धी सलाहकार सम्पादक हैं।
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