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ګڼې افغان مېرمنې د امن کورونو له نشتوالي سره جبري ودونو او نورو ټولنیزو فشارونو ته غاړه اېښې

افغانستان کې د امن کورونو تړلو یو شمېر ښځې بېرته ناامنه شرایطو، اجباري ودونو، ټولنیزو فشارونو او د کورني تاوتریخوالي زغملو ته اړ کړې دي.

د افغانستان د ختیځ یوه اوسېدونکې او د دریو ماشومانو مور وایي خاوند یې د تېر جمهوري نظام پر مهال په ملي اردو کې وژل شوی او اوس نه د کور سرپرست لري او نه کور.

خو دې چې د موضوع د حساسیت له امله نه غوښتل راپور کې یې نوم خپور شي، ازادي راډیو ته وویل چې د خسرګنۍ لخوا له کورني تاوتریخوالي سره مخ ده او د بلې سرپناه نه لرلو له امله د دې حالت زغملو ته مجبوره شوې ده.

دې ازادي راډیو ته زیاته کړه:

هغې زیاته کړه:

«دوه زامن مې دي، یو یې رواني تکلیف لري، خاوند مې جمهوریت وخت کې ملي اردو کې وژل شوی، زما غوښتنه دا ده چې ماته یو څلور دېوالي وکړي یوه کوټه دې راته جوړه کړي، زه نور څوک نه لرم»

دا مېرمن داسې وخت د بدیلې سرپناه د نشتوالي خبره کوي چې د ښځو او بشري حقونو ځینې فعالانې، د تېر جمهوري نظام پر مهال د امن کورونو یا د ښځو د ملاتړ مرکزونو مسؤلینې او د تېر نظام د ښځو چارو پخوانۍ چارواکې وایي له هغه مهال چې طالبان بیا پر افغانستان واکمن شوي، له کورني تاوتریخوالي سره مخ ښځو لپاره ځانګړي امن کورونه او د ملاتو مرکزونه بند او دوی بدیلې سرپناوې نه لري.

له ډلې په افغانستان کې د لومړني جوړ شوي امن کور چې لا هم په کابل کې یوازنی فعال کور دی، پخوانۍ مشرې یې ماري اکرمي ازادي راډیو ته وویل:

«ما په لومړي ځل په ۲۰۰۳ کال کې افغانستان کې د ښځو لپاره امن کور پرانیست چې د افغان ښځو د استعدادونو د ودې دفترونو اړوند دی او لا هم فعال دی، خو له بده مرغه هغه ډول سیستم چې مخکې د ښځو چارو او کورنیو چارو وزارتونو او د بشري حقونو بنسټونو سره یې درلود، اوس نشته، که څه هم د کورنیو چارو اوسنی (د طالبانو) وزارت په ځینو برخو کې دې امن کور ته ښځې راجع کوي، له بده مرغه ډېری دا کورونه اوسني حکومت وتړل او حتی دا ښځې بې پناه او سړک کې پاتې شوې، نو له دې اړخه ښځې له زښته زیاتو ستونزو سره مخ دي»

مېرمن اکرمي وایي د تېر جمهوري نظام پر مهال یوازې په کابل کې د دوی امن کور کې تر ۸۰ ښځې مېشتې وې.

په افغانستان کې د ښځو لپاره د امن کورونو د یوې مرستندویې ادارې استازې چې د موضوع د حساسیت له امله نه غواړي نوم خپور شي هم اندېښنه وښوده چې د امن کورونو په تړل کېدو سره ستونزې ډېرې شوي.

«موږ هغو مؤسسو سره چې ملاتړي مرکزونه «امن کورونه» یې درلودل، کار مو ورسره کاوه، د دوی کارکوونکو، مدافع وکیلانو، ټولنیزو کارکوونکو او هغو کسانو ته چې دې قضیو کې ښکېل و، موږ ورته د ظرفیت جوړونې روزنه ورکوله، اوس د دې کورونو د نشتوالي له امله له تاوتریخوالي سره د مخ ښځو ستونزې څو برابره شوي، بل دا چې حتما دا پېښې شته خو ستونزه دا ده چې دوی څنګه او چېرې مراجعه وکړي، څوک یې غږ واوري او له روحي او حقوقي اړخه څنګه ورسره مرسته وشي»

دا مېرمن وایي چې مخکې په ټول افغانستان کې ۲۶ امن کورونه موجود و، د ۹ ښځینه وو په مدیریت بنسټونو لخوا اداره کېدل چې په بېلابېلو ولایتونو او ډېری یې په کابل کې وو.

د تېر جمهوري حکومت د ښځو چارو وزارت ویاندې رویا دادرس ازادي راډیو ته وویل که څه هم د امن کورونه دایمي نه وو خو ګڼې ښځې پکې خوندي وې.

«هغه ښځې چې د تاوتریخوالي قربانیانې وې او د تلو بل ځای یې نه درلود ځکه کورنیو یې نه منلې، بیا موږ مجبور وو د دې لپاره چې دوی امن وي دې امن کورونو کې یې د قضیې تر حل وساتو، بودجه یې انجوګانو ورکوله، خو نظارت یې د ښځو چارو وزارت کاوه، خو دا کورونه دایمي نه و، دې کورونو کې مو سواد زده کړې، دیني زده کړې، روحي درملنې او ټولې نورې اسانتیاوې برابرولې»

دا مېرمنې داسې وخت دا ننګونې مطرح کوي چې د طالبانو حکومت هم په دې وروستیو کې د ښځو پر وړاندې د کورني تاوتریخوالي د پېښو د ثبتېدو اعلانونه کوي.

د طالبانو حکومت د امر بالمعروف وزارت د جون په ۲۸مه اعلان کړی چې تېره یوه اوونۍ کې یې د ټول افغانستان په کچه ۱۷ ښځې له کورني تاوتریخوالي ژغورلې دي.

دغه وزارت دغه راز په خپله اېکس پاڼه په یو جلا بیان کې ویلي چې د روان ۱۴۰۴ لمریز کال په لومړۍ څلورو میاشتو کې د ګڼو نورو موضوعګانو ترڅنګ ۸۵ د میراث، ۱۰۱ د ظلم او ۶۸ د جبري ودونو پېښو ته رسېدنه کړې ده.

د طالبانو حکومت داسې وخت دا موضوعګانې خپروي چې وخت ناوخت یې ستره محکمه د افغانستان په بېلابېلو ولایتونو کې د نارینه وو په ګډون د ښځو د درو وهلو راپورونه هم ورکوي.

د ښځو او بشري حقونو ځینې فعالان د افغانستان اوسني شرایط د افغان ښځو لپاره بدترینه حالت بولي او له تاوتریخوالي سره مخ او بې پناه ښځو د ملاتړ غوښته کوي.

د معلوماتو له مخې، د ښځو لپاره امن کورونه چې په وروستیو کې ورته «د ښځو د ملاتړ مرکزونه» هم ویل کېدل په لومړي ځل په ۲۰۰۳ کال کې په کابل کې جوړ او وروسته د هرات، کندز، د بلخ او بامیانو په ګډون ځینو لویو ښارونو ته پراخ شول.

د ۲۰۲۱ کال اګسټ کې د طالبانو له بیا واکمنۍ وروسته، کم شمېر یې یوازې په کابل کې تر ۲۰۲۳ کال پورې فعال پاتې و، خو دا مهال په ټول افغانستان کې دغه امن کورونه تقریبا په نشت حساب دي.

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