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ماما قدیر: د بینک له نوکرۍ د لادرکو خلکو د موندلو لپاره تر اوږدې مبارزې

په بلوچستان کې د لادرکه بلوڅانو د موندلو او خوشي کولو لپاره د مبارزه کوونکي عبدالقدیر بلوڅ مړی د دیسمبر پر ۲۱مه د هغه په پلارنۍ سیمه سوراب کې خاورو ته سپارل شوی دی.د وایس فار بلوچ میسینګ پرسنز مشر نصرالله بلوڅ د دیسمبر پر ۲۱مه مشال راډیو ته وویل چې د ماما قدیر په نامه مشهور عبدالقدیر بلوڅ له اوږدې ناروغۍ وروسته يوه ورځ مخکې وفات شو. د هغه په خبره، نوموړی په سوراب کې ښخ کړل شو.

ماما قدیر په ۱۹۴۰ کال کې د بلوچستان د قلات په سوراب سیمه کې زیږيدلی وو. هغه په ځوانۍ کې د نېشنل عوامي ګوند تر سیوري لاندې سیاسي فعايلت کاوه. وروسته یې په یو بينک کې نوکري واخیسته خو کله یې چې په ۲۰۰۹ کال کې زوی، جليل ریکي لادرکه شو نو د هغه او نورو غیب کړل شويو کسانو د موندلو لپاره یې هڅې پيل کړې. هغه د خپلې مبارزې په ترڅ کې د نه خوړلو ګڼ هړتالونه، پراخې مظاهرې او اوږده پرلتونه ترسره کړي وو. نوموړې تور پورې کاوه چې زوی یې د پاکستان استخبارتي ادارو وړی دی خو هغوی دا نه منله او الزام یې رداوه. د جلیل ریکي مړی د ایران له پولې سره نېزدې موندل شوی وو.

قدیر بلوچ د لادرکه کسانو له خپلوانو او یو شمېر فعالانو سره یو ځای له بلوچستان څخه تر اسلام اباده پیاده مارچ هم کړی وو. دا ۱۲۰۰ کيليوميټره سفر وو. هغه مهال نوموړي ويلي وو چې د نړۍ په کچه یې يو تر ټولو اوږد پر پښو سفر ځکه کړی چې غواړي دنياوال د لادرکه خلکو په موندلو کې مرسته وکړي.

پر دې سربیره، قدیر بلوچ په کوټه کې له اوږدې مودې راهیسې روان د پرلتوالو کمپ بنسټګر هم وو. د نصرالله بلوڅ په وینا، له شپږ زره زیاتې ورځې وشوې چې هغه کمپ اوس هم روان دی او هره ورځ پکې د لادرکه خلکو ميندې او خپلوان ګډون کوي.

قدیر په ۲۰۲۰ کال کې مشال راډيو ته ويلي وو چې نوموړي ته د خپلې مبارزې له امله، د پاکستان امنيتي ادارې ګواښونه کوي خو پر دې سربیره هم، هره ورځ هغه کمپ ته ورځي. دغه کمپ ته څو ځل اور هم اچول شوی وو چې نوموړي یې تور د پاکستان پر اسخباراتې ادارو پورې کاوه. خو د بلوچستان حکومت او د پاکستان امنيتي ځواکونو همیشه داسې تورونه رد کړي دي.

په پاکستان کې په زوره د خلکو د بې درکه کولو لړۍ له کلونو راهيسې روانه ده خو د دې هېواد د پخواني پوځي واکمن پروېز مشرف په دور [۱۹۹۹-۲۰۰۸] کې په دې کې زياتوالی راغلی. په بې درکه شويو کسانو کې زده کوونکي، وکيلان، سياسي او مدني فعالان، خبريالان، ډاکټران، پوليس، خاصه دار او مشکوک وسلوال شامل دي. ډيری په زور غيب کړل شوي کسان بلوڅان دي.

د لادرکه بلوڅانو لپاره کار کوونکي سازمان او د بشري حقونو ځينو نړيوالو ادارو تور پورې کړی چې د پاکستان پوځ او جاسوسي ادارو په زرګونه بلوڅان لادرکه کړي او د هغوي خراب کړل شوي مړي غورځوي خو د پاکستان پوځ او حکومت دا تور ردوي.

د جبري بې درکه کسانو د راخوشي کولو لپاره د بلوڅو ګوندونو او سازمانونو او پښتون ژغورنې غورځنګ (پي ټی اېم) په وار وار مظاهرې کړې دي. په دې اړه بلوڅ سازمانونه په ځانګړې توګه ډېر فعاله دي او وخت په وخت يې د بلوچستان، کراچۍ او اسلام اباد په ګډون په نورو سيمو کې مظاهرې، جلسې او پرلتونه وهلي دي.

د پاکستان هر حکومت له بلوڅو ګوندونو او د ورکو کسانو له خپلوانو او فعاله سازمانونو سره په وار وار مذاکرات کړي او ژمنې يې کړي دي چې د بې درکه کسانو دغه ستونزې به هواروي خو لا په بشپړه توګه هواره شوې نه ده.

د پاکستان د قانون وزیر اعظم نذیر تارړ د ۲۰۲۴ کال په اپرېل کې ویلي وو چې په زوره د ورکو شویو کسانو مسله "ډېره پېچلې" ده او په یوه ورځ کې نه شي هوارېدای. نوموړي زیاته کړې وه چې په دې مسله کې د دولتي بنسټونو د لاس لرلو ادعا په کلکه نه شي ردېدلای، خو ویلي یې وو چې په دې اړه يې شواهد نه دي تر لاسه کړي.

په پاکستان کې د جبري بې درکیو د پلټنو سرکاري کمېشن وايي، له ۲۰۱۱ کال راهیسې یې د څه باندې ۱۰۰۰۰ کسانو ورکېدل ثبت کړي دي چې ورڅخه یې ۸۰۰۰ قضیې هوارې کړې دي. خو قدیر بلوڅ مشال راډيو سره په خبرو کې څو ځل ادعا کړې وه چې د لادرکه بلوڅانو شمېر د حکومت لخوا د ورکول شويو شمېرو څخه څو چنده زیات دی.

بلخوا د پاکستان پوځ د لسګونو زرو خلکو د لادرکه کولو تورونه بې بنیاده بولي. پوځي وياندانو په بېلابېلو وختونو کې ادعاوې کړې چې ځینې کسان چې بې درکه بلل کېږي، اصلاً له وسلوالو ډلو سره یوځای شوي دي او ځینې یې د عملیاتو او نښتو پر مهال وژل شوي دي.

خو بلوڅان، په پاکستان کې دننه او دباندې د بشري حقونو ځيني سازمانونونه دا نه مني او غوښتنه کوي چې ټول لادرکه خلک دې عدالتونو ته وړاندې شي. دوی په بېلابېلو خبرپاڼو کې په وار وار د هغه هېواد پر حکومت او امنيتي ادارو په زوره د خلکو لادرکه کولو لړۍ درولو غږ کړی او دا عمل يې د بشري حقونو ضد بللی دی.

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