भारत के आकाश में रूसी ’मिग’ विमानों का राज है
भारत अपनी वायुसेना के लिए 200 से ज़्यादा लड़ाकू विमान ख़रीदना चाहता है
भारत की सरकार जल्दी ही भारत की वायुसेना के लिए लड़ाकू विमानों की ख़रीद करने के लिए टेण्डर माँगने की योजना बना रही है। रूसी विमान निर्माण निगम ’मिग’ ने यह तय किया है कि वह भी इस नई निविदा में भाग लेगा और अपने नवीनतम लड़ाकू विमान ’मिग-35’ को ख़रीदने की पेशकश करेगा। इससे पहले 2015 में भारतीय वायुसेना ने ’मिग-35’ को ख़रीदने से इंकार कर दिया था और फ़्राँसीसी विमान ’रफ़ाल’ को प्राथमिकता दी थी। अब भारतीय वायुसेना अपने पास उपस्थित और पुराने पड़ चुके 200 से ज़्यादा ’मिग-21’ और ’मिग-27’ विमानों को बदलना चाहती है और उनकी जगह नए अभिनव विमान तैनात करना चाहती है।
भारत सरकार ने यह तय किया है कि वह ’ग्रिपेन एनजी’ विमानों का उत्पादन करने वाली स्वीडिश कम्पनी ’साब’ और ’एफ़-16’ विमानों के भारतीय संस्करण का निर्माण करने की इच्छा रखने वाली अमरीकी कम्पनी ’लॉकहीड मार्टिन’ को भी इस निविदा में भाग लेने के लिए आमन्त्रित करेगी। इस निविदा की सबसे बड़ी माँग यह होगी कि भारत को बेचे जाने वाले विमानों के ज़्यादातर हिस्सों का निर्माण भारत में ही किया जाएगा।
मिग-35 इन्फ़ोग्राफ़िक
रूस के विमानन उद्योग के एक सूत्र ने समाचार पत्र ’इज़्वेस्तिया’ को बताया कि सँयुक्त विमानन कॉरपोरेशन और रूसी विमान निर्माण निगम ’मिग’ भारत की वायुसेना द्वारा जारी की जाने वाली इस निविदा में हिस्सेदारी करेंगे। ये दोनों रूसी कम्पनियाँ इस निविदा में भाग लेने के लिए भारत सरकार द्वारा आमन्त्रित किए जाने और औपचारिक रूप से ख़रीदे जाने वाले लड़ाकू विमानों के तकनीकी विवरण जारी किए जाने का इन्तज़ार कर रही हैं। इसके बाद ये कम्पनियाँ निविदा से जुड़े अपने प्रस्ताव तैयार करके भारत की सरकार को भेज देंगी।
आजकल भारत की सरकार अपनी निविदा के उन तकनीकी विवरणों को तैयार करने में लगी हुई है, जो ’प्रस्तावों के लिए अनुरोध’ की शक़्ल में उन कम्पनियों को भेजे जाने हैं, जिनके विमान भारतीय वायुसेना के लिए उपयोगी हो सकते हैं। ये अनुरोध ही नई निविदा की औपचारिक शुरूआत होंगे। सैन्य-राजनयिक सूत्रों के अनुसार, पिछली गर्मियों में ही भारत ने रूस से यह अनुरोध किया था कि वह अपने उस ’मिग-35’ विमान का पूरा विवरण दे दे, जिसकी सप्लाई रूस का सँयुक्त विमानन कॉरपोरेशन भारत को करना चाहता है। रूस ने तब भारत को ’मिग-35’ विमानों में लगे उपकरणों और हथियारों का पूरा विवरण दे दिया था। रूस ने भारत को बता दिया था कि ’मिग-35’ विमान रेडियो-इलैक्ट्रोनिक युद्ध-स्टेशनों, ऑप्टिक इलैक्ट्रोनिक कण्टेनरों, हवा से हवा में मार करने वाले मिसाइलों, हवा से ज़मीन पर मार करने वाले मिसाइलों, सटीक चोट करने वाले हवाई-बमों और कई अन्य तरह के हथियारों से लैस हैं।
इस भावी निविदा में भाग लेने वाली सभी प्रतिद्वन्द्वी कम्पनियों ने सन् 2000 से 2015 के बीच भी ऐसी ही एक निविदा में भाग लिया था, जब भारत ने दस अरब डॉलर खर्च करके 126 लड़ाकू विमान ख़रीदने की योजना बनाई थी। तब रूसी लड़ाकू विमान ’मिग-35’ ने अमरीकी लड़ाकू विमान ’एफ़-16आईएन’ और स्वीडिश लड़ाकू विमान ’ग्रिपेन-एनजी’ को पछाड़ दिया था, लेकिन वह ख़ुद भी फ़्राँसीसी विमान ’रफ़ाल’ से पिछड़ गया था। लेकिन रफ़ाल विमान भारत के लिए सफ़ेद हाथी साबित हुए। वे इतने ज़्यादा महंगे पड़े कि भारत सिर्फ़ 36 रफ़ाल ही ख़रीद पाया। यही नहीं फ़्राँस ने निविदा में किया गया यह वायदा भी पूरा नहीं किया कि रफ़ाल विमानों के उत्पादन और जुड़ाई का काम भारत में भारतीय कारख़ानों में ही किया जाएगा।
रूसी विशेषज्ञ अन्द्रेय फ़्रलोफ़ ने समाचार पत्र ’इज़्वेस्तिया’ को बताया कि भारत सरकार द्वारा लड़ाकू विमानों की ख़रीद करने के लिए नई निविदा की घोषणा यह दिखाती है कि भारत सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार कर रहा है कि भारतीय वायुसेना के विमान बेहद पुराने होते जा रहे हैं और भारत सरकार अभी तक इस समस्या को सुलझा नहीं पाई है।
सुखोई बनाम रफ़ाल
अन्द्रेय फ़्रलोफ़ ने कहा — देखा जाए तो सन् 2000 में घोषित टेण्डर ही अब फिर से जारी किया जाएगा। भारत ने रफ़ाल विमान ख़रीद तो लिए हैं, लेकिन उसे इन विमानों की पहली खेप सिर्फ़ 2019 में ही प्राप्त होगी। ऐसा लगता है कि भारत का अपना स्वदेशी विमान ’तेजस’ भी अभी पूरी तरह से बनकर तैयार नहीं हुआ है। भारतीय वायुसेना में काम कर रहे ’मिग-21’ और मिग-27’ विमान भी बेहद पुराने हो गए हैं और उनसे छुटकारा पाना ज़रूरी हो गया है। मरता क्या न करता। अब भारतीय वायुसेना को तुरन्त लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है।
रूसी विशेषज्ञ अन्द्रेय फ़्रलोफ़ का मानना है कि नई निविदा के परिणाम क्या होंगे, इसका अभी से अन्दाज़ लगा पाना मुमकिन नहीं है। भारत ने निविदा में भाग लेने के लिए जिन कम्पनियों को आमन्त्रित किया है, उनकी अपनी-अपनी दिक़्क़तें हैं। स्वीडन भारत को ग्रिपेन लड़ाकू विमानों के उत्पादन की प्रौद्योगिकी देने के लिए तैयार है, लेकिन इस विमान में स्वीडश तक्नोलौजी का इस्तेमाल बहुत कम किया गया है। ग्रिपेन विमान के ज़्यादातर हिस्से और उसमें लगे ज़्यादातर उपकरण अमरीकी और यूरोपीय कम्पनियों द्वारा बनाए जाते हैं। भारत में ग्रिपेन का उत्पादन करने के लिए भारत को हर कम्पनी से अलग-अलग इजाज़त लेकर अलग-अलग समझौते करने होंगे।
ग्रिपेन विमान के साथ उसकी निर्माता कम्पनी ’साब’ के सामने एक और समस्या यह भी खड़ी होगी कि ऐसे ही नए लड़ाकू विमान बनाने के लिए ’साब’ कम्पनी को स्वीडन की सेना में तैनात विमानों के कल-पुर्जे उतारने होंगे। हाल ही में इस सवाल पर स्वीडन में हंगामा खड़ा हो गया था क्योंकि विशेषज्ञों का कहना था कि विमान में लगे कल-पुर्जों और उपकरणों की नक़ल करने के लिए किसी बने-बनाए विमान से कल-पुर्जे उतारने की जगह क्यों न नए और आधुनिक कल-पुर्जे बनाए जाएँ और उनके निर्माण में ही धन का निवेश किया जाए। ’साब’ कम्पनी का नया विमान 2019 में ही बनकर तैयार होगा। इस तरह ’साब’ कम्पनी भी ’रफ़ाल’ विमान की तरह भारतीय वायुसेना के सामने खड़ी समस्या को तुरन्त हल करने के लिए तैयार दिखाई नहीं देती।
अन्द्रेय फ़्रलोफ़ ने कहा — अमरीकी विमान ’एफ़-16’ के मामले में स्थिति बहुत आसान है। अमरीका 2017 में एफ़-16 विमानों का उत्पादन हमेशा के लिए बन्द करने जा रहा है। इस तरह सैद्धान्तिक रूप से अमरीका की सरकार एफ़-16 विमानों के निर्माण की तक्नोलौजी भारत को बेच सकती है।
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लेकिन वास्तव में देखा जाए तो अमरीका ने आज तक कभी भी अपने हथियारों और अपनी सैन्य-तकनीक के उत्पादन की तक्नोलौजी किसी दूसरे देश को नहीं दी है। वैसे भी एफ़-16 विमान के आख़िरी मॉडल एफ़-16 ब्लॉक 52/57 में जो राडार लगा हुआ है, उसे आधुनिकतम राडार माना जाता है और वह उस अभिनव तक्नोलौजी के अन्तर्गत आता है, जिसका आजकल नए और आधुनिकतम विमानों में उपयोग किया जाता है।
रूस के सामरिक स्थिति अध्ययन केन्द्र के प्रमुख इवान कनावालफ़ का कहना है कि इस तरह मिग-35 ही अकेला इस तरह का विमान बचता है, जिसे ख़रीदते हुए भारत के सामने कोई टेढ़ा सवाल पैदा नहीं होगा।
इवान कनावालफ़ ने कहा — यह विमान भारत के पिछले टेण्डर में भी भाग ले चुका है और काफ़ी सफल रहा है। रफ़ाल के मुक़ाबले भी यह विमान तकनीकी कारणों से नहीं, बल्कि राजनीतिक कारणों से ही पिछड़ा था। औपचारिक रूप से फ़्राँस के रफ़ाल लड़ाकू विमान को चुनने का कारण बस, एक यही था कि भारतीय कानूनों के अनुसार, भारतीय सेना सिर्फ़ किसी एक ही सप्लायर से सारे हथियार और सारी सैन्य तकनीक नहीं ख़रीद सकती है। और उस समय भारत ने रूस से एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमानों और विमानवाहक युद्धपोतों पर तैनात करने के लिए मिग-29/केयूबी लड़ाकू विमान की ख़रीद करने के कई बड़े समझौते कर रखे थे।
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