बक रहे हैं वो, देखो, जुनूँ में क्या-क्या
आज राजनेता लोकप्रियता हासिल करने के लिए जानबूझकर भद्दी-भद्दी बातें करते हैं
रूस सीरिया में इस्लामी आतंकवादियों से लड़ने में सीरिया के राष्ट्रपति बशर असद की सरकार की सहायता कर रहा है और पश्चिमी देश यह देखकर रूस के ख़िलाफ़ ऐसे अमर्यादित शब्दों में बयानबाज़ी करने लगे हैं, जिनका इस्तेमाल उन्होंने कभी ’शीत-युद्ध’ के वर्षों में भी नहीं किया था। हालाँकि वियतनाम युद्ध के समय अमरीकी कार्रवाइयों को सोवियत नेताओं ने ’बर्बर बमवर्षा’ कहा था, लेकिन अमरीकी सेना की उन कार्रवाइयों की तो ख़ुद अमरीकी जनता भी कठोर आलोचना कर रही थी। परन्तु सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसके बावजूद किसी ने भी अमरीका की उन भयानक कार्रवाइयों को ’सैन्य-अपराध’ कहकर नहीं पुकारा था।
आज कूटनीति में तीखे हमले करना बहुत सामान्य बात हो गई है। यहाँ तक कि सहयोगी देश भी इस तरह के हमले करने से कतराते नहीं हैं। जैसे फ़्राँस के पूर्व राष्ट्रपति निकोला सरकोज़ी ने जर्मनी की चांसलर अन्जेला मेरकेल को लेकर मज़ाक करते हुए कहा था कि वे तो कहती हैं कि वे अपना वज़न घटाने की कोशिश कर रही हैं और आजकल उन्होंने खाना खाना कम कर दिया है, लेकिन उसी समय वे पनीर की दूसरी प्लेट माँग रही हैं। और अन्जेला मेरकेल ने भी सरकोजी की तुलना मिस्टर बिन से की थी। इटली के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री बेरलुसकोनी ने तो यूरोसंघ के आधे से ज़्यादा नेताओं से लड़ने के बाद उनसे बोलचाल ही बन्द कर दी थी।
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तीखी बयानबाज़ी करने में आज दुनिया में जिस नेता को ’स्टार’ माना जाने लगा है, वे हैं फ़िलीपिन के राष्ट्रपति रोडरिगो दुतेर्ते। कभी वे बराक ओबामा को ’रण्डी का बेटा’ बताते हैं तो कभी वे उन्हें जहन्नुम में भेज देते हैं। यहाँ तक कि उन्होंने रोम के पोप को भी नहीं छोड़ा। रोम के पोप जिस दिन मनीला की यात्रा पर थे, मनीला में जगह-जगह सड़कें जाम हो गई थीं। फ़िलीपिन के राष्ट्रपति रोडरिगो दुतेर्ते ने इस पर नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा — पोप, रण्डी के बच्चे, अपने घर जा और फिर कभी यहाँ लौट कर नहीं आना।
जनता के बीच लोकप्रियता हासिल करने के लिए राजनेताओं द्वारा अपनाए गए इस तरह के तरीकों को मीडिया भी ख़ूब उछालता है। इन निर्लज्ज और धृष्ट कथनों से राजनेता अपने देश के भीतर ज़रूर लोकप्रिय हो जाते हैं, लेकिन दूसरे देशों के साथ रिश्तों पर इन बातों का बहुत बुरा असर पड़ता है। आज दुनिया की राजनीति में बहुत गिरावट आई है। लोग जानबूझकर ऐसी बातें कहते हैं, जिनको मीडिया ख़ूब उछाले। राजनीति और मीडिया का यह सहयोग इस स्तर पर जा पहुँचा है कि अब दुनिया में इसे ग़लत भी नहीं माना जाता। पहले राजनीतिज्ञ और मीडिया मिलकर एक मिथक खड़ा करते हैं और फिर उस मिथक को अमली जामा पहनाने की कोशिश करते हैं। पश्चिमी मीडिया इस काम में आगे-आगे है। जैसे, उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन को पहले एक हौए के रूप में पेश किया और उसके बाद सारे पश्चिमी मीडिया ने मिलकर पूतिन के ऐसे कार्टून अपने मुखपृष्ठों पर छापने शुरू कर दिए कि उन्हें व्लदीमिर पूतिन के अपमान के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता है। शीत-युद्ध के भयानक वर्षों में सोवियत मीडिया भी कभी इतने नीचे स्तर तक नहीं गिरा था। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पश्चिमी राजनीतिज्ञों के मुँह से इसकी आलोचना में एक शब्द भी नहीं फूटा। वे इसे ही शायद ’अभिव्यक्ति की आज़ादी’ मानते हैं। लेकिन इस तरह की आज़ादी समाज को गर्त में ही ढकेलेगी। जबकि पूतिन ने रूस के एक टीवी एंकर को इस तरह की भाषा इस्तेमाल करने के लिए टोक दिया था, जब उसने बड़ी शान से यह कहा था कि अमरीका को हम ’रेडियमधर्मी धूल’ में बदल देंगे।
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इस तरह की ’अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का इस्तेमाल आज सारी दुनिया में किया जा रहा है। राजनीतिज्ञ आम लोगों की भाषा में बोलने की कोशिश करने लगे हैं। वे उस भाषा में बोलने लगे हैं, जो जनता को तुरन्त समझ में आ जाए। रूस के विदेश मन्त्रालय ने भी ’औपचारिक’ शैली को छोड़कर लोकप्रिय भाषा में जनता को अपनी बात समझाने के लिए मरीया ज़ख़ारवा को अपना प्रवक्ता बना दिया है और मरीया ज़ख़ारवा अपनी आमफ़हम ज़ुबान में लोगों को वह बात समझाने लगी हैं, जो ’दोहरे मानकों’ की नीति चलाने वाले देश अपनी कूटनीति की भाषा बोलकर छुपा लेते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आम लोगों की भाषा अपनाते हुए इतना नीचे भी न गिरा जाए कि आपकी भाषा ही बाज़ारू लगने लगे।
आज सारी दुनिया में राजनीति एक ऐसे नुक्कड़ नाटक या स्वांग में बदल गई है, जिससे जनता के बीच राजनीतिज्ञ अधिकाधिक लोकप्रिय हों। ये राजनीतिज्ञ भी जनता का इस्तेमाल, बस, चुनाव में ही करना चाहते हैं और उसी नज़रिए से सारा नाटक खेलते हैं। उन्हें इसकी कोई चिन्ता नहीं होती कि उनके इस नाटक का दीर्घकालीन असर क्या होगा। जैसे हिलेरी क्लिण्टन को इस बात की चिन्ता नहीं है कि अगर वो चुनाव जीत गईं और अमरीका की राष्ट्रपति बन गईं तो वे राष्ट्रपति पूतिन से कैसे आँख मिलाएँगी, जिनके बारे में उन्होंने पिछले दिनों अपने चुनाव अभियान के दौरान अनेक झूठी बातें कही हैं? सीरिया में संकट के समाधान को लेकर रूस के साथ वे गम्भीर बातचीत कैसे कर पाएँगी, जब वे रूस को ’बर्बर’ और ’सैन्य-अपराधी’ घोषित कर चुकी हैं। जब फ़्राँस के विदेशमन्त्री यह कह चुके हैं कि रूसी नेताओं पर हेग की अन्तरराष्ट्रीय अदालत में मुक़दमा चलाया जाना चाहिए। क्या ऐसा नहीं लगता कि राजनीतिक लोकप्रियता हासिल करने के लिए ये लोग बहुत नीचे गिर गए हैं? अगर उत्तरी सीरिया जैसे दुनिया से अलग-थलग पड़े देश का नेता कोई बदमाशी करे तो यह एक बात है, लेकिन जब किसी ऐसी महाशक्ति के नेता, जिसके ऊपर दुनिया का भविष्य निर्भर करता है, इस तरह की शैतानियाँ करे तो महायुद्ध भी शुरू हो सकता है। ज़रा मध्ययुग को याद करें, जब अपमानित किए गए राजा-महाराजा सिर्फ़ अपने अपमान का बदला लेने के लिए दूसरी रियासतों और राज्यों पर हमला बोल देते थे।
टेलीविजन में प्रसारित होने वाली ख़बरों में कोई भी लड़ाई ’बड़ी भली’ मालूम होती है और उससे लोकप्रियता भी बढ़ती है, लेकिन टेलीविजन-दर्शक ख़ुद उस लड़ाई में फँसना नहीं चाहते। वे तो बस, दूर बैठे-बैठे ही उस लड़ाई का पूरा-पूरा मज़ा लेना चाहते हैं।
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