रूस में तीसरा भारतीय फिल्म महोत्सव : खुल रहे हैं व्यापक संभावनाओं के द्वार
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मास्को में जाली एलएलबी, भाग मिल्खा भाग, क्वीन और दृश्यम फ़िल्में दिखाई देंगी
आगामी 19-20 नवम्बर को मस्क्वा के ’लुक्सोर सेन्त्र’ सिनेमा हाल में तीसरा वार्षिक भारतीय फिल्म महोत्सव आयोजित किया गया है। दो दिन तक चलने वाले इस फिल्म महोत्सव का उद्देश्य रूस के निवासियों को आधुनिक भारत के जन-जीवन के विभिन्न रंगों और पहलुओं से परिचित कराना है। इस फिल्म महोत्सव के दौरान गत तीन-चार वर्षों में रिलीज हुईं बालीवुड की चार हिन्दी फ़िल्में दिखाई देंगी। ये फ़िल्में हैं — जाली एलएलबी, भाग मिल्खा भाग, क्वीन और दृश्यम।
रूस में भारतीय फिल्मों के इस महोत्सव का आयोजन भारतीय राजदूतावास के अन्तर्गत सक्रिय जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केन्द्र और रूस का संस्कृति मन्त्रालय मिलकर करते हैं।
मास्को में हिन्दी भाषा के भविष्य पर विचार-विमर्श
तीसरे वार्षिक भारतीय फिल्म महोत्सव के औपचारिक उद्घाटन के अवसर पर 19 नवम्बर को ’लुक्सोर सेन्त्र’ सिनेमा हाल में रूसी फिल्म- उद्योग की जानी-मानी हस्तियाँ और कई लोकप्रिय रूसी फ़िल्म सितारे भी मौज़ूद रहेंगे। आयोजकों के अनुसार, भारतीय फिल्म महोत्सव के उद्घाटन के मौक़े पर प्रसिद्ध रूसी निर्देशक दिमित्री कुज़्मिन के अलावा नतालिया बच्कार्योवा, मरीया गुज़्येवा, सयोरा सफ़ारी, अल्योना मारिएवा और दाना कल्त्सोवा जैसी अनेक सुप्रसिद्ध रूसी अभिनेत्रियाँ उपस्थित रहेंगी। भारतीय फ़िल्म महोत्सव के दौरान सभी फ़िल्में आम जनता को निःशुल्क दिखाई जाएँगी।
रूस स्थित भारत के राजदूत पंकज सरन ने तीसरे वार्षिक भारतीय फिल्म महोत्सव के बारे में चर्चा करते हुए कहा — मैं अक्सर रूस के विभिन्न शहरों में जाता रहता हूँ, इसलिए यह बता सकता हूँ कि पूरे रूस में लोग भारतीय फ़िल्मों के दीवाने हैं। रूस में भारतीय फ़िल्मों का महोत्सव एक बहुत महत्वपूर्ण आयोजन है, जिसका हमने हमेशा समर्थन किया है और भविष्य में भी हम उसका आयोजन करते रहेंगे। 2014 में, रूस में पहली बार हमने भारतीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया था। इस महोत्सव ने रूस में बालीवुड को लोकप्रिय बनाने में शानदार योग दिया है।
सब जानते हैं कि सोवियत सत्ताकाल में रूस में राजकपूर की फ़िल्में बेहद लोकप्रिय थीं। राजकपूर की फ़िल्मों के अलावा भी हिन्दी फ़िल्में रूस में हमेशा ही लोकप्रिय रही हैं। लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भारतीय फ़िल्में रूस के सिनेमा-गृहों से गायब हो गईं। हालीवुड का मुक़ाबला करने और रूसी वितरकों को अपनी फ़िल्में सस्ती क़ीमतों पर उपलब्ध कराने में अपने को असमर्थ पाकर भारतीय फिल्म निर्माताओं ने रूस से विमुख होकर अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और मध्यपूर्व में भारतीय आप्रवासियों के बीच अपनी फ़िल्मों का बाज़ार तैयार कर लिया।
कुछ साल पहले, रूस में भारतीय फ़िल्मों की लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए ’विश्वव्यापी भारतीय फिल्मोत्सव’ यानी ’इण्डियन फ़िल्म फ़ेस्टिवल वर्ल्डवाइड’ ने रूस में भारतीय फ़िल्म महोत्सवों के आयोजक और आईएफ़एफ़आर के निदेशक डा० सरफ़राज़ आलम से हाथ मिला लिया। अब दोनों संस्थाएँ मिलकर रूसी और भारतीय मनोरंजन उद्योगों के बीच पैदा हो गई खाई को पाटने की योजना बना रही हैं। रूस में भारतीय फ़िल्म महोत्सव के दौरान न केवल भारतीय फ़िल्में दिखाई जाती हैं, बल्कि रूसी नृत्य मण्डलियाँ भारत के कथक और भरतनाट्यम जैसे नृत्यों के साथ-साथ भारतीय सुगम और शास्त्रीय संगीत भी प्रस्तुत करती हैं।
रूस में बेहद लोकप्रिय हिन्दी फ़िल्में
हाल ही में डा० सरफ़राज़ आलम ने बताया कि वे मास्को और रूस के अन्य प्रदेशों में बालीवुड की 100 से ज़्यादा फ़िल्में दिखाने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा — हमारे लिए उत्तरी कोहकाफ़ एक बिल्कुल नया इलाका है, जिसकी ओर भविष्य में हम निश्चित तौर पर अधिकाधिक ध्यान देंगे। डा० आलम ने कहा कि मस्क्वा में 30 सिनेमाहालों ने भारतीय फ़िल्में दिखाने की हामी भर दी है।
उन्होंने बताया कि युवा रूसी फ़िल्म दर्शक न केवल हिन्दी की कला-फ़िल्में देखना चाहते हैं, बल्कि वे बालीवुड के चकाचौंध भरे गीतों और नृत्यों का भी लुत्फ़ उठाना चाहते हैं। आज आईएफ़एफ़आर रूस में बालीवुड की फ़िल्मों के दीवानों को ये सभी चीज़ें उपलब्ध कराता है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि रूस में भारतीय फ़िल्मों के महोत्सव के आयोजन का उद्देश्य भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय सांस्कृतिक सम्बन्धों को मज़बूत बनाना तथा दोनों देशों के बीच आपसी व्यापारिक अनुभव का आदान-प्रदान करना भी है।
कई रूसी पर्यटन एजेंसियों का मानना है कि बालीवुड भारतीय पर्यटकों को रूसी पर्यटन स्थलों से परिचित कराने का एक साधन भी बन सकता है। यदि बालीवुड में बनाई जाने वाली फिल्मों की शूटिंग रूस में की जाए तो ऐसा हो सकता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय पर्यटक अक्सर स्विट्जरलैंड जैसे देशों में उन जगहों पर ज़रूर जाते हैं, जो जगहें वे बालीवुड की फिल्मों में देखते हैं। रूसी सघीय पर्यटन एजेंसी के अन्तरराष्ट्रीय विकास विभाग के प्रमुख वलेरी करोफ़्किन ने कहा — हम हालीवुड को नहीं बल्कि बालीवुड को महत्व दे रहे हैं। भारत और रूस मिलकर रूस में हिन्दी फ़िल्मों की शूटिंग को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
तीसरे वार्षिक भारतीय फिल्म महोत्सव के औपचारिक उद्घाटन के अवसर पर 19 नवम्बर को ’लुक्सोर सेन्त्र’ सिनेमा हाल में हिन्दी फ़िल्म ‘जाली एलएलबी’ दिखाई जाएगी। सुभाष कपूर द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म भारत की न्याय व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य है। आज तक आम बालीवुड फ़िल्मों में जिस तरह से न्यायालय को महिमामण्डित किया जाता रहा है, उससे हटकर इस फ़िल्म में पूरी न्याय व्यवस्था पर व्यंग्य किया गया है और इसका वास्तविक चित्रण किया गया है। शायद ‘जाली एलएलबी’ ऐसी पहली हिन्दी फ़िल्म है, जिसमें न्याय प्रणाली पर व्यंग्य किया गया है।
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यह दो वक़ीलों की कहानी है। इनमें से एक वक़ील हैं जगदीश त्यागी (अरशद वारसी), जो छोटे शहर से आए हैं और काफ़ी महत्वाकाँक्षी हैं और रातों-रात कुछ कर दिखाना चाहते हैं। दूसरी ओ़र, बड़े शहर के एक बड़े वक़ील के किरदार में तेजिन्दर राजपाल (बोमन ईरानी) हैं। इन दोनों वक़ीलों के बीच एक मुक़दमे को लेकर टक्कर होती है, जिसे सचाई की रोशनी में मज़ेदार ढंग से परोसा गया है। अप्रैल 2014 में 61वें भारतीय राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में ‘जाली एलएलबी’ को सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म का पुरस्कार मिला था।
भारतीय फ़िल्म महोत्सव के उद्घाटन के दिन ही यानी 19 नवम्बर की शाम को ही प्रेरणाभरी कहानी पर आधारित फ़िल्म 'भाग मिल्खा भाग' दिखाई जाएगी। 'भाग मिल्खा भाग', भारतीय धावक मिल्खा सिंह की कहानी है, जिन्हें “फ़्लाइंग सिख” के नाम से जाना जाता है। फ़िल्म एक ऐसे लड़के की कहानी है, जो भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद पाकिस्तान से भाग जाता है। वह अपने इस विगत का सामना करना और अपने जीवन की दौड़ दौड़ना चाहता है। 2013 में रिलीज होने के बाद 'भाग मिल्खा भाग' इतनी लोकप्रिय हुई कि दो-चार दिनों में ही वह बाक्स ऑफिस पर 100 करोड़ रुपए कमाने वाली बालीवुड फ़िल्मों के क्लब में शामिल हो गई थी।
प्रसून जोशी की पटकथा पर आधारित इस फ़िल्म का निर्देशन राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने किया है और फ़िल्म में मुख्य किरदार फ़रहान अख़्तर, सोनम कपूर, पवन मल्होत्रा, प्रकाश राज, योगराज सिंह और दिव्या दत्ता ने निभाए हैं। फ़िल्म में पहले स्थान पर है फ़रहान (मिल्खा सिंह) की एक्टिंग और अपने इस किरदार में उतरने के लिए उनकी मेहनत। विनोद प्रधान की बेहतरीन सिनेमेटोग्राफ़ी, पवन मल्होत्रा और मिल्खा की बहन के रोल में दिव्या दत्ता की शानदार अदाकारी भी दर्शकों को बाँधे रखती है। इस फ़िल्म के जरिए दर्शक मिल्खा सिंह को और क़रीब से जान पाते हैं।
20 नवम्बर को उसी सिनेमाहॉल में दो फ़िल्में – ‘क्वीन’ और ‘दृश्यम’– दिखाई जाएँगी। प्रकाश बहल द्वारा निर्देशित ‘क्वीन’ 2014 में रिलीज हुई थी, जो एक कामेडी-नाट्य फ़िल्म है। 'क्वीन' की कहानी शुरू होती है दिल्ली के एक घर से, जहाँ बसे मध्यमवर्गीय परिवार में रानी (कंगना रानावत) की शादी की तैयारियाँ चल रही हैं।
इसी बीच अचानक, रानी का मंगेतर विजय (राजकुमार राव) उसे मिलने के लिए कॉफी शॉप में बुलाता है और कहता है कि वह रानी से शादी नहीं करना चाहता। ये दोनों पेरिस जाकर हनीमून मनाने का प्लान बना चुके थे, इसलिए शादी टूटने के बाद भी रानी अकेले ही हनीमून पर पेरिस चली जाती है, और यहीं से शुरू होता है रानी का 'हनीमून सफ़र', जिसके दौरान वह “अपनी पहचान” तलाश लेती है।
‘दृश्यम’ मलयालम फ़िल्म ‘दृश्यम’ का हिन्दी रिमेक है जो एक कमाल की थ्रिलर फ़िल्म है। इसका निर्देशन निशिकान्त कामत ने किया है और फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ अजय देवगन, श्रेया सरन, रजत कपूर और तब्बू ने निभाई हैं। ‘दृश्यम’ की कहानी की विशेषता यह है कि किसी बात को दर्शकों से छिपाया नहीं गया है। अपराधी सामने है और पुलिस उस तक कैसे पहुँचती है, इसको लेकर रोमांच पैदा किया गया है।
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