कुडनकुलम दुनिया का सबसे सुरक्षित एटमी बिजलीघर
विगत 15 अक्तूबर को कुडनकुलम एटमी बिजलीघर की दूसरी ऊर्जा उत्पादन इकाई भारत को सौंपने का समारोह हुआ। भारत में आज भी बिजली की भारी कमी बनी हुई है। इस नज़रिए से देखें तो भारतीय विद्युत वितरण प्रणाली के लिए यह कैसा अवसर था?
कुडनकुलम एटमी बिजलीघर भारत में बिजली के उत्पादन के क्षेत्र में बड़ा भारी सहयोग कर रहा है। अभी तक यहाँ बनाए जा चुकीं दो बिजली उत्पादन इकाइयाँ और आगे बनने वाली चार इकाइयाँ तमिलनाड, केरल, कर्नाटक और पुण्डुचेरि के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। सिर्फ़ कुडनकुलम बिजलीघर का निर्माण पूरे होने के बाद भारत एटमी ऊर्जा के विकास के उस उद्देश्य को प्राप्त कर लेगा, जो भारत ने सन् 2030 तक के लिए तय किया है। यही नहीं अक्षय ऊर्जा और एटमी ऊर्जा का उत्पादन बढ़ने से कोयले तेल और गैस पर भारत की निर्भरता कम होती जा रही है।
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कुडनकुलम एटमी बिजलीघर की पहली इकाई की उत्पादन क्षमता ने दिखाया कि वह उम्मीद से ज़्यादा उत्पादन कर रही है। उसकी उत्पादन रूपान्तरण दक्षता 2.4 प्रतिशत और उत्पादन क्षमता 2.5 प्रतिशत ज़्यादा है। इसका मतलब यह है कि भारत ने जैसी बिजली उत्पादन इकाई पाने की आशा की थी, यह इकाई उससे कहीं ज़्यादा बेहतर है। कुडनकुलम एटमी बिजलीघर की दूसरी इकाई राष्ट्रीय बिजली वितरण प्रणाली (ग्रिड) से जुड़ने के बाद दक्षिणी भारत को एक गीगावॉट बिजली उपलब्ध कराएगी।
क्या भारत इन रूसी बिजली उत्पादन इकाइयों की सुरक्षा व्यवस्था से सन्तुष्ट है? क्या इन इकाइयों में इस्तेमाल की गई सुरक्षा व्यवस्थाएँ आधुनिक सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुरूप हैं?
कुडनकुलम एटमी बिजलीघर दुनिया का पहला ऐसा बिजलीघर है, जिसका निर्माण फ़ुकुशीमा दुर्घटना के बाद तय की गई सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुकूल किया गया है। इस बिजलीघर का निर्माण करते हुए दुनिया की सबसे बेहतरीन सुरक्षा व्यवस्थाओं का इस्तेमाल किया गया है। यह बिजलीघर भारी से भारी भूकम्प, सुनामी और बवण्डर का सामना कर सकता है।
बिजलीघर की निष्क्रिय सुरक्षा व्यवस्थाएँ बिजली की सप्लाई पूरी तरह से बन्द होने के बाद भी और ऑपरेटर के बिना भी काम करती रहेंगी। ये सुरक्षा व्यवस्थाएँ आम तौर पर स्वीकृत कसौटियों (यानी जब बिजलीघर के सबसे सक्रिय क्षेत्र भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं) से कहीं ज़्यादा बेहतर हैं। इस तरह परमाणु सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो यह बिजलीघर नई, चौथी पीढ़ी के एटमी बिजलीघरों जैसा ही है।
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कुडनकुलम एटमी बिजलीघर में इस्तेमाल की गई तकनीक ऐसी है कि उससे पर्यावरण में कभी विकिरण नहीं फैलेगा। हर रिएक्टर पर दो सुरक्षा कवच चढ़े हुए हैं। और ये दोनोंं सुरक्षा कवच एक-दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं, बल्कि उनके बीच में खाली जगह छोड़ी गई है। रिएक्टर पर चढ़ा हुआ भीतरी कवच यह सुनिश्चित करता है कि रिएक्टर से विकिरण का रिसाव न हो और बाहरी कवच तूफ़ान, बवण्डर, भूचाल, बाढ़ आदि की परिस्थितियों में या विस्फोट और रिएक्टर पर विमान गिरने जैसी हालतों में रिएक्टर को बाहरी खतरों और झटकों से बचाता है और यह सुनिश्चित करता है कि किसी तरह की कोई औद्योगिक दुर्घटना न हो।
यहाँ तक कि कुडनकुलम बिजलीघर को यदि बिजली की सप्लाई भी पूरी तरह से बन्द हो जाएगी तथा उसकी सुरक्षा व्यवस्था को मिलने वाले तकनीकी पानी की व्यवस्था भी रुक जाएगी, तब भी यह एटमी बिजलीघर हवा के माध्यम से बिना बाहरी ऊर्जा का इस्तेमाल किए ही रिएक्टर को विश्वसनीय ढंग से ठण्डा कर लेगा।
इन रूसी रिएक्टरों की ख़ासियत यह है कि इनमें उच्चस्तरीय निदान प्रणालियाँ लगी हुई हैं, जो रिएक्टर की पूरी व्यवस्था में कहीं भी कोई भी ख़राबी पैदा होते ही उस ख़राबी को पकड़ लेती हैं और अपने आप स्वचालित रूप से ऑपरेटरों को उस ख़राबी की जानकारी दे देती हैं।
कुडनकुलम एटमी बिजलीघर में रिएक्टर पर दोहरे कवच की व्यवस्था, रिएक्टर को ठण्डा करने की और ईंधन को पिघलने से बचाने की निष्क्रिय प्रणाली, उच्च दबाव को रिकार्ड करने की निष्क्रिय प्रणाली, रिएक्टर को लम्बे समय तक जल की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए वहाँ लगाई गई अतिरिक्त विशाल जल-टंकियाँ, दो कवचों के बीच की खोखली जगह में फैली हवा को साफ़ करने की व्यवस्था तथा रिएक्टर को तकनीकी जल की आपूर्ति करने वाली टंकियों के पूरी तरह से बन्द ढक्कन इस एटमी बिजलीघर को अतिरिक्त रूप से सुरक्षा प्रदान करते हैं और इसके आसपास के पर्यावरण को भी सुरक्षित बनाए रखने की गारण्टी देते हैं।
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अच्छा, यह बताइए कि कुडनकुलम एटमी बिजलीघर की तीसरी और चौथी इकाइयों का निर्माण कब शुरू होगा? और क्या पाँचवी और छठी इकाइयों के निर्माण से जुड़ा अनुबन्ध तैयार कर लिया गया है?
कुडनकुलम एटमी बिजलीघर में पन-जल ऊर्जा परमाणु रिएक्टरों यानी वीवीईआर-1000 रिएक्टरों वाली कुल छह इकाइयों का निर्माण किया जाएगा।
इस बिजलीघर में निर्माण के दूसरे दौर में तीसरी और चौथी ऊर्जा उत्पादन इकाइयाँ बनाई जाएँगी। इन इकाइयों के निर्माण के बारे में रूस और भारत ने अप्रैल 2014 में एक अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए थे। तीसरी और चौथी इकाइयों का शिलान्यास विगत 15 अक्तूबर 2016 को किया गया, जब गोवा में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन हो रहा था। एक विडियो कांफ़्रेंस की मदद से रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन, भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और वलेरी लिमारेन्का ने भी इस शिलान्यास समारोह में हिस्सा लिया।
इन इकाइयों में लगाए जाने वाले उपकरणों की आपूर्ति और इन इकाइयों के नक़्शों और दस्तावेज़ों को उपलब्ध कराने का काम भी शुरू कर दिया गया है। दूसरे देशों से इन इकाइयों के लिए जो उपकरण मंगाए जाने हैं, उनके अनुबन्ध भी तैयार किए जा रहे हैं।
फ़रवरी 2016 में कुडनकुलम एटमी बिजलीघर की तीसरी और चौथी इकाइयों की इमारतों की नींव खोदने और वहाँ से मिट्टी हटाने का काम शुरू हो गया था।
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जहाँ तक पाँचवीं और छठी इकाइयों की बात है तो रूस ने नवम्बर 2015 में ही उनके निर्माण के बारे में तकनीकी और व्यवसायिक प्रस्ताव भारत को उपलब्ध करा दिया था। उसके बाद भारत ने सैद्धान्तिक तौर पर यह फ़ैसला कर लिया था कि कुडनकुलम में पाँचवी और छठी इकाइयाँ भी बनाई जाएँगी। इन इकाइयों में भी पन-जल ऊर्जा परमाणु रिएक्टर यानी वीवीईआर-1000 रिएक्टर लगाए जाएँगे, जैसे रिएक्टर पहली चार इकाइयों में लगाए जाने हैं। फिर फ़रवरी 2016 में पाँचवी और छठी इकाइयों का निर्माण करने से जुड़े सामान्य रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर करने के बारे में एक रोड मैप तैयार कर लिया गया।
रूसी एटमी बिजलीघर प्रतिस्पर्धी अमरीकी और फ़्राँसीसी बिजलीघरों से किस मायने में बेहतर हैं?
भारत के सतत स्थिर विकास के लिए ऊर्जा सुरक्षा बड़ा महत्व रखती है। 11 दिसम्बर 2014 को रूस और भारत ने एक ऐसे रोडमैप पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे ’बारह-बीस’ कहकर पुकारा जाता है। इस रोडमैप के अनुसार, रूस भारत में 20 से ज़्यादा एटमी रिएक्टरों का निर्माण करेगा तथा दोनों देश मिलकर अन्य देशों में एटमी बिजलीघरों के निर्माण के क्षेत्र में सहयोग करेंगे। इसके अलावा दोनों देश मिलकर सँयुक्त रूप से प्राकृतिक यूरेनियम की खुदाई करेंगे, एटमी ईंधन का उत्पादन करेंगे और एटमी कचरे को नष्ट करने के लिए प्रबन्धन करेंगे। इस तरह दो देशों के बीच एटमी सहयोग का परस्पर रूप से लाभकारी दीर्घकालीन कार्यक्रम तैयार किया गया है। रूस और भारत नए गुणात्मक स्तर पर सहयोग करने लगे हैं। अब वे सेवाओं, मालों और तकनीक की ख़रीद-फ़रोख़्त नहीं करते, बल्कि भारत के लिए एकदम नए उद्योग का मिलकर निर्माण कर रहे हैं।
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एटमी बिजलीघरों और एटमी रिएक्टरों के निर्माण का वास्तविक अनुभव दुनिया में बस कुछ ही देशों को है, जिसमें अमरीका, फ़्राँस, चीन, कोरिया और रूस का ही नाम लिया जा सकता है। लेकिन अभी तक रूस को छोड़कर एटमी बाज़ार में सक्रिय दूसरे देशों को तीन प्लस पीढ़ी की तकनीक पर आधारित रिएक्टर बनाने का अनुभव नहीं है। तीन प्लस पीढ़ी के एटमी रिएक्टरों के निर्माण के क्षेत्र में रूस अपने सभी प्रतिस्पर्धी देशों से बहुत आगे है। अभी 5 अगस्त 2016 को ही रूस ने अपने यहाँ नवा-वरानेझ्स्की एटमी बिजलीघर-2 को राष्ट्रीय बिजली वितरण प्रणाली से जोड़ा है। यह नया एटमी बिजलीघर अनेक अभिनव और आधुनिकतम तकनीकों से लैस है। यह एटमी बिजलीघर तीन प्लस पीढ़ी का ऐसा पहला रिएक्टर है, जिसमें पन-जल ऊर्जा परमाणु रिएक्टर यानी वीवीईआर -1200 मेगावाट का रिएक्टर लगा हुआ है। अब हमारे नए सम्भावित ग्राहक नवा-वरानेझ्स्की एटमी बिजलीघर-2 में आकर यह देख सकते हैं कि उनके यहाँ किस तरह का एटमी बिजलीघर बनाया जाएगा। अभी तक भारत और बहुत से दूसरे देशों के विशेषज्ञ नवा-वरानेझ्स्की एटमी बिजलीघर-2 को देखने आ चुके हैं।
हम भारत सहित दुनिया के दूसरे देशों में इस अनूठी तकनीक पर आधारित ऐसे ही बिजलीघर बनाना चाहते हैं। रूस में बनाए गए नए नवा-वरानेझ्स्की एटमी बिजलीघर-2 को राष्ट्रीय बिजली वितरण प्रणाली से जोड़ने के बाद हमने भारतीय विशेषज्ञों के साथ भारत में भी तीन प्लस पीढ़ी के ऐसे ही शक्तिशाली बिजलीघर बनाने के बारे में बातचीत शुरू कर दी है।
भारत के साथ एटमी सहयोग और किन-किन क्षेत्रों में किया जा सकता है? क्या हमारे दोनों देशों के बीच सहयोग सिर्फ़ एटमी बिजलीघरों का निर्माण करने तक ही सीमित रहेगा?
भारतीय विशेषज्ञों ने एटमी ऊर्जा के क्षेत्र में रूस के साथ सहयोग की वजह से होने वाले फ़ायदों का विस्तार से मूल्यांकन किया है और वे इस सहयोग के महत्व को समझ गए हैं। कुडनकुलम एटमी बिजलीघर के अलावा रूस और भारत मिलकर भारत में कई दूसरे एटमी बिजलीघर भी बनाना चाहते हैं। दो देशों के बीच यह सहमति हो गई है कि रूस कुडनकुलम के अलावा एक और नया एटमी बिजलीघर भारत में बनाएगा। उस बिजलीघर में भी छह उत्पादन इकाइयों का निर्माण किया जाएगा।
परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में हमारे दो देशों के बीच जारी पारम्परिक सहयोग के अलावा रोसएटम परमाणु चिकित्सा, कृषि उपजों की रेडियम विकिरण निष्कीटन तकनीक के इस्तेमाल तथा चिकित्सा उपकरणों का निष्कीटन जैसी नई दिशाओं में भी भारत के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर आगे बढ़ रहा है।
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