भारत-रूस रेलमार्ग के विकास में भारत को भी सक्रिय होने की ज़रूरत
’रूस रेलवे’ कम्पनी के उपाध्यक्ष अलिक्सान्दर मिशारिन ने कहा कि भारत को ’उत्तर-दक्षिण अन्तरराष्ट्रीय रेल-गलियारे’ यानी भारत-रूस रेलमार्ग के विकास में बड़ी सक्रियता से हिस्सेदारी करनी चाहिए।
अज़रबैजानी समाचार समिति ’द फ़र्स्ट न्यूज़’ ने जानकारी दी है कि अज़रबैजान की राजधानी बाकू में ’रणनीतिक साझेदारी 1520 : कास्पियाई इलाका’ विषय पर हो रहे अन्तरराष्ट्रीय रेल व्यवसाय सम्मेलन में बोलते हुए अलिक्सान्दर मिशारिन ने कहा — भारत-रूस रेलमार्ग के विकास के लिए मुम्बई बन्दरगाह और ईरान के बन्देर-अब्बास बन्दरगाह के बीच नियमित रूप से जहाज़ चलाना भी बेहद ज़रूरी है।
उत्तर-दक्षिण गलियारा जल्दी ही स्वेज़ नहर की जगह ले सकता है
अलिक्सान्दर मिशारिन ने कहा — आजकल ’रूस रेलवे’ कम्पनी इस सिलसिले में भारत की कम्पनियों के साथ बातचीत कर रही है। लेकिन इस परियोजना पर अमल तभी हो सकेगा, जब ईरान भी इसमें शामिल होगा क्योंकि इस परियोजना को पूरा करने से जुड़ी मुख्य ज़िम्मेदारी ईरान को ही निभानी होगी।
अलिक्सान्दर मिशारिन ने ज़ोर दिया — इस कास्पियाई इलाके में यदि अच्छी तरह से परिवहन का ढाँचा बना दिया जाए तो इस इलाके में व्यवसाय के विकास, पूँजी की गति और पूँजी-निवेश पर सकारात्मक असर पड़ेगा और इस इलाके में उपस्थित देशों का आर्थिक विकास काफ़ी तेज़ हो जाएगा। हालाँकि आजकल दुनिया की आर्थिक स्थिति बड़ी ख़राब चल रही है, लेकिन इसके बावजूद पिछले तीन साल में ’उत्तर-दक्षिण’ अन्तरराष्ट्रीय रेल-गलियारे में मालों की ढुलाई काफ़ी बढ़ गई है।
इस सम्मेलन में बोलते हुए ’रूस रेलवे लॉजिस्टिक’ कम्पनी के प्रथम उपमहानिदेशक एदुआर्द अलिरज़ाएफ़ ने कहा कि ’उत्तर-दक्षिण’ अन्तरराष्ट्रीय रेल-गलियारे को सक्रिय करने की दृष्टि से सामने आने वाली मुख्य समस्याओं का समाधान कर लिया जाए तो भारत और रूस के बीच शुरू की गई इस रेलसेवा की मालवहन बाज़ार में बड़ी माँग होगी। इस रेलमार्ग पर साल भर में कम से कम 12 से 15 हज़ार कण्टेनर मालों की ढुलाई की जा सकेगी।
’उत्तर-दक्षिण’ अन्तरराष्ट्रीय रेल-गलियारे में मालों की ढुलाई करने वाली पहली एजेण्ट-कम्पनी ’रूस रेलवे लॉजिस्टिक’ के प्रथम उपमहानिदेशक एदुआर्द अलिरज़ाएफ़ ने कहा कि आज इस परियोजना के विकास में मुख्य बाधा सूचनाओं और जानकारियों का अच्छी तरह से प्रचार-प्रसार न होने के कारण पड़ रही है। लोगों को और व्यावसायिक कम्पनियों या तो इस नए रेलमार्ग के बारे में जानकारी ही नहीं है या उन्हें इस रेल सेवा पर पूरा-पूरा विश्वास नहीं है। माल भेजने वाली कम्पनियाँ दूसरे रास्तों से ही मालों को भेजने की आदी हो गई हैं। इस नई रेल सेवा को स्वीकार करने और इसपर पूरी तरह से विश्वास करने में अभी समय लगेगा।
रूस, ईरान और अज़रबैजान नया परिवहन गलियारा बनाने के लिए तैयार
उनका मानना है कि इस समस्या को सुलझाने के लिए यह ज़रूरी है कि मुम्बई और साँक्त पितेरबुर्ग के बीच रेलसेवा को नियमित कर दिया जाए और माल परिवहन के बाज़ार में भारत, ईरान, अज़रबैजान और रूस में इसका ख़ूब सक्रियता के साथ प्रचार-प्रसार किया जाए।
भारत-रूस रेलसेवा को लोकप्रिय बनाने के लिए यह ज़रुरी है कि मालों की ढुलाई से जुड़ी परेशानियों को कम से कम किया जाए, जैसे मालों की ढुलाई के लिए बनने वाले दस्तावेज़ों को घटाकर सिर्फ़ एक ही काग़ज़ लागू कर दिया जाए। बन्देर-अब्बास बन्दरगाह से रूस में मालों के प्राप्ति स्थल तक माल के साथ सिर्फ़ एक ही दस्तावेज़ हो। हर उस देश में जहाँ से माल भेजा जा रहा है, ग्राहक को कण्टेनर में पूरी-पूरी जगह उपलब्ध कराई जाए तथा अज़रबैजान के आस्त्रा से लेकर मस्क्वा (मास्को) तक मालों की तेज़ी से ढुलाई की जाए और भारत और ईरान के बीच समुद्री जहाज़ भी नियमित रूप से चलाए जाएँ।
अज़रबैजान की राजधानी बाकू में ’रणनीतिक साझेदारी 1520 : कास्पियाई इलाका’ विषय पर हो रहे अन्तरराष्ट्रीय रेल व्यवसाय सम्मेलन में कुछ ऐसे अन्तरराष्ट्रीय समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए गए, जो भारत-रूस रेलमार्ग के विकास से जुड़े हुए हैं। ’रूस रेलवे’ की प्रेस-सेवा ने बताया कि इस परियोजना में ’रूस रेलवे’ की सहयोगी कम्पनियों के अलावा ’दलयान पोर्ट लिमिटेड कारपोरेशन’, ’बाकू मेट्रोपोलिटन’, ’अज़रबैजान रेलवे’ और ’फ़ेडरेशन ऑफ़ इण्डियन ट्राँसपोर्ट-लॉजिस्टिक कम्पनीज एसोसियेशन्स’ भी साझेदार होंगी। इन नए समझौतों की बदौलत कास्पियाई देशों की कम्पनियों के साथ रूसी कम्पनियों का प्रलप्रद सहयोग और अधिक सक्रियता से आगे बढ़ेगा।
’उत्तर-दक्षिण’ नामक यह अन्तरराष्ट्रीय रेल-परिवहन गलियारा उत्तरी यूरोप को दक्षिण से और दक्षिण-पूर्वी एशिया से जोड़ेगा तथा ईरान, अज़रबैजान और रूस के रेलमार्गों को भी आपस में एक-दूसरे से जोड़ देगा।
अक्तूबर-2016 में ’रूस रेलवे लॉजिस्टिक’ कम्पनी ने ’ट्राँसकण्टेनर’ कम्पनी, ईरानी रेलवे, अज़रबैजानी रेलवे और माल संवाहक ’एडीवाई एक्सप्रेस’ एजेंसी के साथ मिलकर मुम्बई से कालूगा ज़िले में स्थित ’फ़्रेट-विलेज-वरसीनो’ लॉजिस्टिक कॉम्पलेक्स तक औद्योगिक रेडियेटरों की पहली खेप पहुँचाई। इस माल को रिसीव करने से लेकर इसकी डिलीवरी तक कुल 22 दिन का समय लगा। इस तरह एक तो माल की ढुलाई का खर्चा क़रीब 20 प्रतिशत कम हो गया, दूसरे माल की ढुलाई बहुत जल्दी हो गई। आम तौर पर तुर्कमेनिया और कज़ाख़स्तान के रास्ते माल के पहुँचने में कम से कम 45 दिन लग जाते हैं।
’उत्तर-दक्षिण’ नामक यह नया अन्तरराष्ट्रीय रेल-परिवहन गलियारा यानी यह नया रेलमार्ग भारत से ईरान और अज़रबैजान से गुज़रकर 7 हज़ार किलोमीटर की दूरी पार करके रूस तक जाता है।
रूस दुनिया में गेहूँ का सबसे बड़ा निर्यातक