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क्या भारत के हथियार बाज़ार पर रूस का कब्ज़ा बना रहेगा?

मेक इन इण्डिया और तकनीक सौंपने की रूस की नीति

भारत को बड़े स्तर पर रूसी हथियारों के निर्यात का एक बड़ा कारण यह है कि रूस हमेशा भारत सरकार की ’मेक इन इण्डिया’ की नीति को स्वीकार करते हुए भारत को अपने हथियारों की तकनीक भी सौंपने के लिए तैयार रहता है। 

अभी नवम्बर के महीने में ही यह मालूम हुआ कि भारत सरकार ने रक्षा मन्त्रालय को रूस से एकदम आधुनिकतम 464 टी-90एमएस टैंकों के निर्माण का लायसेंस ख़रीदने और इन टैंकों का भारत में ही उत्पादन करने की अनुमति दे दी है। 

भारत को टी-90 टैंकों की सप्लाई के इस अनुबन्ध की बदौलत पूरी दुनिया में आधुनिकतम टैंकों का 56 प्रतिशत बाज़ार रूस के अधिकार में आ गया है। 

टी-90 टैंक। स्रोत : Alexey Malgavko / RIA Novosti

टी-90 टैंकों का यह अनुबन्ध मिलने के बाद भारत को टैंकों की पूरी आपूर्ति पर रूस का अधिकार हो गया है। रूस की इस सफलता के कई कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि दुनिया का आधुनिकतम टैंक होने के बावजूद भारत के लिए रूस ने टी-90एमएस टैंक की क़ीमत बहुत कम रखी है। पश्चिमी देशों में विभिन्न क़िस्म के आधुनिक टैंकों की क़ीमत 60 लाख से 80 लाख डॉलर के बीच में है। भारतीय टैंक ’अर्जुन’ की क़ीमत भी क़रीब-क़रीब इतनी ही है। दूसरा कारण यह है कि टी-90 टैंक पश्चिमी टैंकों के मुक़ाबले वज़न में बहुत हलका है, जिसकी वजह से उसका संचालन करना आसान होता है और वह तेज़ी से पैंतरे बदलने में माहिर है। भारत जैसे दुर्गम भूभाग में टैंक की यह ख़ासियत विशेष महत्व रखती है। इसी वजह से भारत की सेना ने भारतीय टैंक ’अर्जुन’ को भी नकार दिया है। ’अर्जुन’ का वज़न क़रीब-क़रीब 60 टन है, जबकि टी-90 का वज़न उसके विभिन्न मॉडलों में सिर्फ़ 46 से 48 टन ही है। इसके अलावा ’अर्जुन’ के परिचालन में भी दिक़्क़त होती है। और तीसरा कारण यह है कि टी-90 टैंकों का उत्पादन करने वाली कम्पनी ’उराल-वगोन-ज़ावोद’ ने भारत में ही टी-90 टैंकों के कुछ हिस्सों का उत्पादन करने और टी-90 टैंकों की जुड़ाई करने का कारख़ाना बना दिया है।

भारत-रूस रेलमार्ग के विकास में भारत को भी सक्रिय होने की ज़रूरत

क्या पाँचवी पीढ़ी के विमान से रूस को कमाई होगी? 

भारत को बहुउद्देशीय एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमानों की बिक्री करने का अनुबन्ध रूसी रक्षा उद्योग के लिए भारत के साथ शायद सबसे सफल सौदा रहा है। रूस के एसयू-27 विमान का ही भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप आधुनिकीकरण करके दो सीटों वाले इस विमान का निर्माण किया गया है। टी-90 टैंकों की तरह भारत को बेचे गए इस क़िस्म के ज़्यादातर विमानों का उत्पादन भी भारत में ही किया गया है। इस तरह कुल 272 एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमानों के लिए भारत को सिर्फ़ 12 अरब डॉलर का भुगतान करना पड़ा। अभी तक भारतीय वायुसेना को इस तरह के कुल 230 लड़ाकू विमानों की सप्लाई की जा चुकी है और 2018-2019 तक इस सौदे के अन्तर्गत सभी 272 विमान भारत को दे दिए जाएँगे। 

पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान का निर्माण दुनिया के हथियारों के बाज़ार में रूसी लड़ाकू विमान निर्माण उद्योग की पैठ और उसके भविष्य के लिए एक  आधारशिला है। भारत की सरकार भी भविष्य में इस तरह के 200 लड़ाकू विमान ख़रीदने का इरादा रखती है।

पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान। स्रोत : Pavel Novikov

लेकिन फिर भी पाँचवी पीढ़ी के इस विमान के निर्माण की परियोजना के रास्ते में बीच-बीच में बाधाएँ आती रहती हैं। भारत सरकार ने 2010 में रूस के साथ 30 करोड़ डॉलर में इस विमान का नक़्शा और डिजाइन तैयार करने का एक अनुबन्ध किया था। लेकिन बाद में यह परियोजना ठप्प हो गई और भारतीय मीडिया में इस तरह की कई अलग-अलग अफ़वाहें सामने आईं कि भारत के उच्च सैन्याधिकारियों का यह मानना है कि रूसी डिजाइन भारत की सामरिक और तकनीकी आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है। बाद में पता लगा कि कुछ समस्याएँ तो थीं, लेकिन उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा था। अब भारत और रूस के बीच यह सहमति हो गई कि दोनों देश इस विमान के निर्माण और परीक्षणों पर चार-चार अरब डॉलर खर्च करेंगे। इसके साथ-साथ भारत ने रूस से अपनी यह शर्त भी मनवा ली कि इस विमान का उत्पादन करते हुए भारत में ही इस विमान के ज्यादातर पुर्जे बनाए जाएँगे। अब इस विमान का 40 प्रतिशत हिस्सा भारत में ही बनाया जाएगा, हालाँकि शुरू में यह तय हुआ था कि भारत में इस विमान के सिर्फ़ 25 प्रतिशत कल-पुर्जे ही बनाए जाएँगे।

थल, जल और आकाश में कैसे आते-जाते हैं रूस के राष्ट्रपति

भारत ने रूसी युद्धपोतों को बचाया

उक्रईना का संकट उभरने के बाद उक्रईना की सरकार ने एकतरफ़ा ढंग से रूस के साथ सैन्य-तकनीकी सहयोग करने के समझौते को रद्द कर दिया। इसके बाद, रूसी रक्षा उद्योग के लिए उक्रईना के उद्योगों में जो कल-पुर्जे बनाए जाते थे, उनमें से ज़्यादातर कल-पुर्जे रूस ने ख़ुद ही बनाने शुरू कर दिए। लेकिन 11356 परियोजना वाले जो युद्धपोत रूस बनाता है, उनमें लगाए जाने वाले गैस टर्बाइन इंजन इतनी जल्दी रूस में बना पाना बहुत मुश्किल ही नहीं बल्कि असम्भव है। जब उक्रईना ने रूस के साथ सैन्य-तकनीक सहयोग समझौते को रद्द किया, उस समय रूसी जलयान कारख़ानों में परियोजना 11356 के तीन युद्धपोत बनकर तैयार खड़े हुए थे और उक्रईना से आने वाले गैस टर्बाइन इंजनों का इन्तज़ार कर रहे थे। अब जब उक्रईना ने रूस के साथ सहयोग बन्द कर दिया तो ये युद्धपोत भी बेकार हो गए।

भारतीय नौसेना के तलवार श्रेणी का युद्धपोत। स्रोत : George Hutchinson / wikipedia.org

लेकिन इस जटिल समस्या से बाहर आने का रास्ता निकल आया। भारत ने रूस से ये युद्धपोत ख़रीद लिए। वैसे भी भारती नौसेना के पास इस क़िस्म के तलवार श्रेणी के 6 युद्धपोत पहले से ही हैं, जो रूस ने 1990 के शुरू में भारत के लिए विशेष रूप से बनाकर उसे सप्लाई किए थे।

भारत ने रूस से इस क़िस्म के दो अधबने युद्धपोत ख़रीद लिए। रूस में इनका निर्माण पूरा कर दिया जाएगा। इसके अलावा भारत ने ऐसे ही दो और युद्धपोतों का भारत में निर्माण करने का अधिकार भी ख़रीद लिया। इन दो युद्धपोतों का निर्माण ’मेक इन इण्डिया’ नीति के तहत भारत में ही किया जाएगा। उक्रईना भारत को इन सभी युद्धपोतों के लिए गैस टर्बाइन इंजनों की सप्लाई करने पर सहमत हो गया है। सबसे ज़रूरी बात तो यह है कि अब इन युद्धपोतों पर पोतनाशक मिसाइल ’ब्रह्मोस’ तैनात किए जा सकेंगे।  जल्दी ही लड़ाकू विमान एसयू-30 एमकेआई को भी इन पोतनाशक मिसाइलों से लैस किया जाएगा। भविष्य में पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों पर भी ये मिसाइल तैनात किए जाएँगे।

अब रूसी सैनिकों को भी योग सिखाया जाएगा

राह में रोड़े

ऊपर लिखी बातें पढ़कर शायद आपको ऐसा लग रहा होगा कि भारत और रूस के बीच सैन्य-तकनीकी सहयोग काफ़ी सफलता के साथ चल रहा है और रूस के सामने किसी तरह की कोई समस्या पैदा नहीं हो रही है। लेकिन सच-सच कहा जाए तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। भारत आजकल दुनिया भर के हथियार निर्यातकों के लिए शहद का छत्ता बना हुआ है। हर देश के हथियार निर्माता और हथियारों के सप्लायर भारत को अपने-अपने हथियारों की सप्लाई करने की कोशिश कर रहे हैं। और ये लोग अपनी कोशिशों में सफल भी हो रहे हैं। भारत के हथियारों के बाज़ार में अमरीका और फ़्राँस की हिस्सेदारी काफ़ी बढ़ गई है। इसका मुख्य कारण यह है कि रूस के पास उस तरह के हथियार नहीं हैं, जिस तरह के हथियार ये देश पेश कर रहे हैं। 

जैसे भारत ने मध्यम दूरी के बहुउद्दशीय लड़ाकू विमानों की ख़रीद करने के लिए एक निविदा जारी की। इस निविदा के अनुसार, भारत को इस तरह के 126 लड़ाकू विमान ख़रीदने हैं। रूस ने मिग-29 विमान का आधुनिकीकरण करके मिग-35 नामक इस तरह के एक विमान का डिजाइन तैयार किया है। लेकिन यह डिजाइन अभी तक सिर्फ़ नक़्शे पर ही है, इसलिए भारत के रक्षा अधिकारियों ने रूस के इस विमान पर विचार करना भी ज़रूरी नहीं समझा और यह निविदा फ़्राँस के राफ़ेल लड़ाकू विमान ने जीत ली। ऐसे ही भारतीय वायुसेना को बहुउद्देशीय सामरिक मालवाहक व परिवहन विमानों की ज़रूरत है। भारत अपने एएन-32 विमानों की जगह नए विमान ख़रीदना चाहता है। रूसी वायुसेना में काम कर रहे इसी तरह के एएन-12,  एएन-26 और एएन-72 विमान भी पुराने हो चुके हैं। अगर इस परियोजना पर काम किया जाता तो यह परियोजना काफ़ी सफल होती और बड़ी फ़ायदेमन्द होती। लेकिन इस परियोजना का पहला मॉडल सामने आने से पहले ही भारत और रूस के बीच में मतभेद पैदा हो गए और भारत औपचारिक तौर पर इस परियोजना से अलग हो गया। मीडिया में जो जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार, दो देशों के बीच इस विमान के इंजन को लेकर विवाद हुआ है। रूस का कहना था कि इस विमान में पीएस-90 इंजन का ही आधुनिकीकृत और सुधरा हुआ नया मॉडल इस्तेमाल किया जाए, जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है, लेकिन भारत यह माँग कर रहा था कि इस विमान के लिए इंजन भी एकदम नए ढंग का बनाया जाए, जो इलैक्ट्रोनिक-डिजिटल संचालन व्यवस्था से लैस हो और जो कम से कम ईंधन खाए।

भारत के आकाश में रूसी ’मिग’ विमानों का राज है

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