दस्ताएवस्की के उपन्यास ’अपराध और दण्ड’ की 150 वीं जयन्ती
सन् 1865 के अगस्त के महीने में एक व्यापारी के बेटे गिरासिम चीस्तफ़ पर, जिसे पहले ही ईसाई धर्म से निकाला जा चुका था, एक बूढ़ी धोबन और एक बूढ़ी महाराजिन की हत्या का आरोप लगाया गया। इन दोनों बूढ़ी औरतों की मालकिन को लूटने के उद्देश्य से उसने ये हत्याएँ की थीं। सारे घर में सामान फैला हुआ था और लोहे के एक बक्से में रखे सोने के जेवर ग़ायब हो चुके थे। दोनों बूढ़ी औरतों की हत्या एक ही कुल्हाड़ी से की गई थी।
बहुत से आलोचकों का मानना है कि फ़्योदर दस्ताएवस्की ने इसी वास्तविक आपराधिक घटना को आधार बनाकर अपने उपन्यास ’अपराध और दण्ड’ की रचना की थी। दुनिया भर में आज भी इस उपन्यास को लेकर बहसें और चर्चाएँ होती हैं और ये बहसें करते हुए लेखक और साहित्यकार बहुत उत्तेजित हो जाते हैं।
विश्व-संस्कृति आज भी उद्वेलित है
हेरमन हेस्स का कहना था कि ’अपराध और दण्ड’ में लेखक ने विश्व इतिहास के एक पूरे युग को चित्रित कर दिया है। वहीं अल्बेयर कामू ने यह माना था कि दस्ताएवस्की के उपन्यासों से उनकी आत्मा को एक गहरा झटका लगा, जिसने उनकी पूरी रचनात्मकता को बुरी तरह से प्रभावित किया।
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’अपराध और दण्ड’ ने दुनिया की नाट्य-गतिविधियों और थियेटर को भी बेहद प्रभावित किया। पूरे यूरोप में ’अपराध और दण्ड’ पर आधारित नाटक खेले गए हैं और इन नाटकों में सबसे शानदार नाटक माना गया — पेरिस के ’ओडियन’ नाट्य थियेटर में 1888 में पेश किए गए नाटक को, जिसका निर्देशन किया था पोल जिन्स्टी ने।
दस्ताएवस्की के इस उपन्यास पर ’दर्जनों’ फ़िल्में भी बन चुकी हैं। इस उपन्यास पर पहली फ़िल्म 1909 में क्रान्तिपूर्व के ज़ारशाही रूस में बनी थी। लेकिन 1969 में सोवियत फ़िल्म-निर्देशक लेफ़ कुलिझानफ़ द्वारा बनाई गई फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म माना जाता है।
आज के समकालीन फ़िल्म-निर्देशक भी इस उपन्यास में गहरी रुचि दिखा रहे हैं। ख़ासकर वुडी एलेन दस्ताएवस्की की रचनाओं में दिलचस्पी रखने के लिए जाने जाते हैं। उनकी फ़िल्में ’मैच-प्वाइण्ट’ (2005) और ’बेतुका आदमी’ ( इर्रेशनल मैन, 2015) की तुलना अक्सर दस्ताएवस्की के उपन्यास ’अपराध और दण्ड’ से की जाती है।
ऐतिहासिक जासूसी उपन्यासों के लोकप्रिय रूसी लेखक बरीस अकूनिन ने भी ’एफ़० एम०’ (फ़्योदर मिख़ाइलविच) नाम का एक उपन्यास लिखा है, जिसमें उन्होंने दस्ताएवस्की के ’अपराध और दण्ड’ उपन्यास के नायक रस्कोलनिकफ़ के अपराध की जाँच को ही मुख्य विषय बनाया है। दस्ताएवस्की के उपन्यास का ही एक पात्र जाँच-अधिकारी परफ़ीरि पित्रोविच बरीस अकूनिन के इस उपन्यास का नायक है और वह रस्कोलनिकफ़ के अपराध की जाँच कर रहा है।
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2016 में मस्क्वा (मास्को) में ’अपराध और दण्ड’ उपन्यास के आधार पर एक म्यूजिकल यानी संगीत-नाटिका प्रस्तुत की गई और लन्दन में इसी उपन्यास को आधार बनाकर एक रॉक-म्यूजिक नाटिका का प्रदर्शन किया गया।
कालेपानी की सज़ा से प्रेरित उपन्यास
प्रसिद्ध रूसी लेखक और आलोचक विस्सरिओन बेलिन्स्की के एक प्रतिबन्धित पत्र को वितरित करने के लिए दस्ताएवस्की को 1850 से 1854 तक चार साल कालेपानी की सज़ा पाकर साइबेरिया में गुज़ारने पड़े थे। अपनी लम्बी कहानी ’मौतघर की डायरी’ में दस्ताएवस्की ने कालेपानी की उन भयानक स्थितियों का विस्तार से वर्णन किया है। कालेपानी में गुज़ारे उन चार सालों ने दस्ताएवस्की पर बहुत गहरा असर डाला था। तभी दस्ताएवस्की ने अपने युग की भयानकता को गहराई से महसूस किया। सारे मुल्क में ग़रीबी का राज़ था, अपराध लगातार बढ़ते जा रहे थे और जनता अपने ग़म भुलाने के लिए शराब का सहारा ले रही थी। दस्ताएवस्की ने यह तय किया कि वे अपने इस समय को अपनी रचनाओं में ज़रूर व्यक्त करेंगे।
लेकिन हमेशा कोई न कोई ऐसी घटना घट जाती कि दस्ताएवस्की वह सब न कर पाते, जो उन्होंने सोच रखा था। उनके सामने लगातार आर्थिक संकट बना हुआ था और उन्हें छोटी-मोटी रक़मों के लिए तयशुदा समय में जल्दबाज़ी में रचनाएँ लिखकर देनी पड़ रही थीं। फिर 1865 में दस्ताएवस्की ने रूस में उन दिनों छपने वाली एक साहित्यिक पत्रिका ’अतेचिस्तविन्निए ज़ापिसकी’ (जन्मभूमि की टिप्पणियाँ) के तत्कालीन सम्पादक अन्द्रेय क्रएवस्की के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वे उनकी पत्रिका के लिए एक लम्बी कहानी लिख सकते हैं, जिसमें एक अपराधी की मनोदशा का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाएगा।
दस्ताएवस्की कहानी लिखना शुरू कर देते हैं और वह कहानी धीरे-धीरे एक बड़े उपन्यास की शक़्ल ले लेती है। दस्ताएवस्की बाक़ी सभी काम छोड़कर इस उपन्यास की रचना में रम जाते हैं। 1866 का पूरा साल वे इस उपन्यास को लिखने में बिता देते हैं। उपन्यास धारावाहिक रूप से ’अतेचिस्तविन्निए ज़ापिसकी’ (जन्मभूमि की टिप्पणियाँ) पत्रिका में छपने लगता है। बाद में दस्ताएवस्की ने ख़ुद यह स्वीकार किया कि उन्होंने कालेपानी की सज़ा पाए हुए एक क़ैदी की तरह दिन-रात इस उपन्यास पर काम किया। यहाँ तक कि वे घूमने के लिए भी घर से नहीं निकलते थे।
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1866 में ’अपराध और दण्ड’ रूस की सबसे चर्चित रचना बना हुआ था। पाठकों, लेखकों, आलोचकों और साहित्यकारों के बीच, बस, इसी उपन्यास को लेकर बहसें और चर्चाएँ होती रहती थीं।
उपन्यास के तीन रूप
कुल मिलाकर ’अपराध और दण्ड’ नामक इस उपन्यास की तीन हस्तलिखित प्रतियाँ मिलती हैं। इन तीनों ही प्रतियों में दस्ताएवस्की ने जगह-जगह सम्पादन और संशोधन कर रखे हैं। वास्तव में ये एक ही उपन्यास के तीन विभिन्न प्रारूप हैं।
इन तीनों हस्तलिखित प्रतियों का अध्ययन करने के बाद यह साफ़ हो जाता है कि ख़ुद दस्ताएवस्की भी लम्बे समय तक इस सवाल का उत्तर खोजते रहे थे कि उपन्यास के नायक रस्कोलनिकफ़ ने ये हत्याएँ क्यों की थीं? रस्कोलनिकफ़ नाम रूसी भाषा के रस्कोल (टूट-फूट) शब्द से बनाया गया है। दस्ताएवस्की इस समस्या से दो-चार हो रहे थे कि रस्कोलनिकफ़ की आत्मा में यह टूट-फूट क्यों हो गई थी? उनके इस उपन्यास की हर हस्तलिखित प्रति में घटनाओं का अलग-अलग वर्णन किया गया है। इस उपन्यास के पहले प्रारूप में दस्ताएवस्की ने दिखाया है कि उपन्यास का नायक इसलिए समाज के एक नगण्य और तुच्छ व्यक्ति की हत्या कर देता है ताकि उसके पैसे से कुछ नया, अद्भुत्त और सुखद रच सके।
उपन्यास के दूसरे प्रारूप में भी रस्कोलनिकफ़ मानवीय विचारों से ओत-प्रोत है — वह अपमानित और दुखित दलित लोगों की दुनिया को एक कंजूस और लालची बुढ़िया से मुक्त कराना चाहता है। लेकिन दस्ताएवस्की समझते हैं कि किसी के हित में किसी दूसरे की हत्या करने के इस विरोधाभासी विचार के पीछे सत्ता हथियाने की कोशिश भी छिपी होती है।
इस उपन्यास के तीसरे प्रारूप में दस्ताएवस्की इस विचार को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाकर ’नेपोलियन के विरक्तता के दर्शन’ से जोड़ देते हैं और यह समझना चाहते हैं कि क्या वे ख़ुद एक लेखक के रूप में रस्कोलनिकफ़ को मारने का अधिकार रखते हैं, क्या उन्हें भी रस्कोलनिकफ़ को नष्ट करने का अधिकार है।
इस उपन्यास का अन्तिम हिस्सा लिखते हुए ख़ुद दस्ताएवस्की भी दुविधा में थे और बड़ी गहरी बेचैनी महसूस कर रहे थे। उनके इस उपन्यास के एक प्रारूप में यह टिप्पणी भी लिखी हुई है कि रस्कोलनिकफ़ ने आत्महत्या करने का फ़ैसला कर लिया है।
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