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रूस में मेडिकल की शिक्षा कैसी है?

मेडिकल की पढ़ाई करने की इच्छा रखने वाले एक आम भारतीय छात्र के लिए रूस में जाकर पढ़ने का फ़ैसला लेना कोई आसान बात नहीं है। एक ओर तो रूस और भारत के मौसम में बड़ा फ़र्क है, वहीं दूसरी ओर दो देशों की संस्कृति में भी बहुत बड़ा अन्तर है। इसके अलावारूस में पढ़ाई की भारी-भरकम फ़ीस चुकाना और मेडिकल इंस्टीट्यूट में प्रवेश पाने के लिए चयन की कठिन प्रक्रिया से गुज़रना भी आसान नहीं है। लेकिन इसके बावजूद बढ़िया शिक्षा पाने का आकर्षण भारतीय छात्रों को रूस खींच लाता है।

रूस में पढ़ाई करने की बात सोच रहे छात्रों के मन में जो सवाल उठते हैं, उनका उत्तर रूसी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई समाप्त कर चुके डाक्टरों से बेहतर और कौन दे सकता है। डॉ० प्रमित राय नई दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में कनिष्ठ रेजीडेण्ट डॉक्टर हैं। उन्होंने बताया — रूस में शिक्षा पाना अपने आप में एक अनूठा अनुभव है। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं डॉक्टर बनना चाहता था। और चूँकि भारत में कैपिटेशन फ़ीस बहुत ज़्यादा थी, इसलिए मैंने रूस की ’त्वेर राजकीय चिकित्सा अकादमी’ में दाख़िला ले लिया। 

ब्रिक्स विश्वविद्यालयों की साख-सूची में रूसी विश्वविद्यालय आगे-आगे

अखिल भारतीय विदेशी चिकित्सा स्नातक संघ के अध्यक्ष डॉ० ए० नज़ीरुल अमीन ने बताया — वहाँ के सभी मेडिकल इंस्टीट्यूटों में शिक्षा देने के लिए अत्याधुनिक उपकरणों और प्रयोगशालाओं का इस्तेमाल किया जाता है।  डॉ० नजीरुल अमीन ने ख़ुद वोल्गाग्राद विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है। वे रूस में मेडिकल की पढ़ाई करने के इच्छुक लोगों की सहायता करने में काफ़ी आगे-आगे रहते हैं। डॉ० अमीन की राय मेंरूस ने अपने विश्वविद्यालयों की तरफ़ विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए सभी तरह के ज़रूरी क़दम उठाए हैं। विदेशी छात्रों से रूसी प्राध्यापकों का विनम्र व्यवहार भी इस चीज़ को दर्शाता है कि रूस विदेशी छात्रों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है। स्तव्रापल  विश्वविद्यालय के स्नातक डॉ० इमरान शेख ने कहा — हमारे प्राध्यापक हमसे बड़ा सहयोगी बरताव किया करते थे। वे इस बात को समझते थे कि हमें पढ़ने के लिए इतनी दूर विदेश में आना पड़ा है क्योंकि हम भारतीय चिकित्सा कालेजों में महँगी फ़ीस नहीं चुका सकते हैं। 

जो लोग रूस पढ़ने जा रहे होते हैं, उन्हें जब जानकार लोग यह बताते हैं कि रूसी लोगों का व्यवहार बड़ा दोस्ताना होता है, तो उन्हें बड़ी हिम्मत मिलती है। लेकिन इसके बावजूद रूस के बेहद ठण्डे  मौसम को लेकर उनके मन में चिन्ता बनी ही रहती ही है। महाराष्ट्र के रहने वाले डॉ० मोहसिन अहमद ने रूस के अपने शुरूआती दिनों के बारे में बताया — शुरू-शुरू में तो वहाँ के ठण्डे मौसम से तालमेल बैठाने में मुझे बड़ी परेशानी हुई। किन्तु वहाँ मिलने वाली सुविधाओं के कारण मैं जल्दी ही उस मौसम का आदी हो गया और इसके बाद मुझे ठण्डे मौसम में बाहर जाने में भी कोई दिक़्क़त नहीं होती थी। डॉ० मोहसिन अहमद की राय में रूस के ठण्डे मौसम में भी बड़े आराम से रहा जा सकता है। 

डॉ० प्रमित राय ने रूस में भारतीय छात्रों के सामने आने वाली दूसरी बड़ी चुनौती — भाषा के बारे में भी बात की। डॉ० राय ने कहा —सबसे पहली बात तो यह है कि भारत के लोग रूसी भाषा को जितना मुश्किल समझते हैं, रूसी भाषा उतनी मुश्किल है नहीं। छह महीने बीतते-बीतते हमारे साथ के अधिकांश छात्र शिक्षकों और स्थानीय लोगों के साथ सारी बातचीत रूसी में ही करने लगे थे। डॉ० राय ने बताया— रूस में सभी विदेशी छात्रों को रूसी या अँग्रेज़ी में से किसी एक भाषा में पढ़ाई करने के लिए कहा जाता है। जो छात्र अँग्रेज़ॊ को चुनते हैं, उन्हें इसके साथ-साथ रूसी भाषा भी पढ़ाई जाती हैं ताकि वे स्थानीय लोगों के साथ बातचीत कर सकें, रूसी संस्कृति को जान-समझ सकें और जितने समय तक वे रूस में रहें, तब तक अपने जीवन को मज़ेदार तरीके से जी सकें।

वास्तव में रूस में पढ़ाई करने वाले विदेशी छात्रों को भी जीवन के अद्भुत अनुभवों से दो-चार होने के उतने ही भरपूर अवसर मिलते हैं, जितने विश्व के किसी अन्य देश में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों को। डॉ० हुस्ना सुरूर ने रूस में अपनी पढ़ाई के दिनों के बारे में बताते हुए कहा —वहाँ पर मैंने विभिन्न स्थितियों से तालमेल बैठाना, साथियों से सुख-दुख साझा करना और एक-दूसरे की परवाह करना सीखा। स्ताव्रपल विश्वविद्यालय के विदेशी छात्रावास में यूनान की दो लड़कियों से मेरी  बड़ी दोस्ती हो गई थी। वहाँ मुझे रूस की संस्कृति को समझने व महसूस करने का मौक़ा तो मिला ही, इसके साथ-साथ दूसरे विभिन्न देशों की संस्कृतियों से परिचित होने का ख़ूब मौक़ा मिला।  डॉ० सुरूर ने कहा — हमारे हॉस्टल में 32 दूसरे देशों की छात्राएँ भी रहती थीं। इस वजह से हमें दक्षिण अफ़्रीका से लेकर श्रीलंका, पाकिस्तान, हालैण्ड, क्यूबा आदि देशों की छात्राओं से मुलाक़ात करने का मौक़ा मिला। सबसे अच्छी बात तो यह थी कि हम अपने हॉस्टल में इन सभी देशों के त्यौहार मिलकर मनाया करते थे।

रूस में भारतीय आप्रवासी समुदाय

त्वेर चिकित्सा अकादमी में मिले अनुभवों के बारे में डॉ० प्रमित की राय भी कुछ इसी प्रकार की रही — हम लोग हर साल दीवाली की पार्टी किया करते थे, नवरात्रि, बैसाखी आदि त्यौहार मनाया करते थे और हर साल सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया करते थे। यही नहीं,हम क्रिकेट मैच भी खेला करते थे। वहाँ पर हमें मस्लेनित्सा, देन पबेदि, महिला दिवस, पुरुष दिवस, नगर दिवस तथा रूसी क्रिस्मस आदि रूसी उत्सवों में भी भाग लेने के मौक़े मिले।  डॉ० प्रमित राय को स्थानीय रूसी लोगों के साथ बातचीत करने में बड़ा मज़ा आता था। वैसे दूसरे भारतीय छात्रों का भी यही हाल था। डॉ० राय ने बताया — रूसी लोग हम भारतीयों की तुलना में बहुत कम मिलनसार होते हैं। वैसे उनके अन्दर दोस्ती की भावना कूट-कूटकर भरी होती है। आपसे दोस्ती होते ही रूसी लोग आपको जब-तब अपने घर भी बुलाते रहते हैं। रूसी लोग बड़े मेहमाननवाज़ होते हैं। भारत के लिए तो वे जैसे दीवाने ही हैं और हम लोगों के साथ ज़्यादातर वे भारतीय संस्कृति के ही बारे में बातचीत करते रहते थे।

रूसी विश्वविद्यालयों में पढ़ने पर छात्रों को एक-दूसरे की संस्कृति के बारे में जानने-समझने के भरपूर मौके मिलते हैं। डॉ० इमरान शेख ने बताया — हमारे कॉलेज में हर साल सैर-सपाटे का प्रोग्राम बनाया जाता था और मैंने कॉलेज के हर टूर में हिस्सा लिया। शेख ने कहा —मुझे कोहकाफ़ के पहाड़ी इलाके में बने नालचिक और दम्बई नामक सुन्दर पहाड़ी क़स्बों के अपने टूर अक्सर याद आते है। हालाँकि मस्कवा (मास्को) का हमारा टूर सबसे यादगार टूर था। डॉ० प्रमित राय ने रूस के अपने सैर-सपाटों के बारे में बताते हुए कहा — त्वेर चिकित्सा अकादमी का छात्र कल्याण विभाग अक्सर ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों की यात्राएँ आयोजित करता है, परन्तु हमें ख़ुद अपने मन से कहीं पर घूमने-फिरने की भी पूरी आज़ादी थी। हम बर्फ़ स्केटिंग और स्कीइंग जैसे बर्फ़ पर फिसलने वाले खेलों का भी खूब मज़ा लिया करते थे। बेंगलुरु की रहने वाली डॉ० सुरूर को घूमना-फिरना ख़ूब पसन्द है। रूस में अपनी पढ़ाई के दौरान अपनी पर्यटन यात्राओं के बारे में बात करते-करते वे तो जैसे वहाँ की यादों में बिल्कुल खो ही गईं। उन्होंने अपने मन में छिपी बात हमसे बताई — मुझे रूस में होने वाली बर्फ़बारी की खूब याद आती है! 

वैसे तो रूस का वातावरण कुल मिलाकर काफी दोस्ताना है, लेकिन इसके बावजूद विदेशी छात्रों को थोड़ी सावधानी बरतने की भी ज़रूरत है। डॉ० प्रमित राय ने रूस जाने वाले छात्रों को सलाह देते  हुए कहा — रूस में भी नस्लवाद से जुड़ी इक्की-दुक्की घटनाएँ घट जाती हैं। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि स्थानीय लोग भारतीय छात्रों की पिटाई कर देते हैं। इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए विश्वविद्यालय सुरक्षा सम्बन्धी दिशा-निर्देश जारी करते रहते हैं। डॉ० अहमद ने बताया — हमारे विभागाध्यक्ष हमें बराबर यह सलाह दिया करते थे कि हम कॉलेज की बाउण्ड्री के बाहर स्थानीय लोगों के साथ बहुत अधिक मेलजोल न रखा करें। जहाँ तक मेरे अनुभव की बात है, तो हमारा स्ताव्रपल शहर मुझे साँक्त पितेरबुर्ग (सेण्ट पीटर्सबर्ग) या मस्कवा (मास्को) के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा सुरक्षित लगा। डॉ० सुरूर भी उसी मेडिकल कॉलेज में पढ़ती थीं। हालाँकि वे भी डॉ० अहमद की इस बात से सहमति जताती हैं, लेकिन उनका कहना है कि उन्हें कभी सुरक्षा सम्बन्धी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। डॉ० सुरूर ने बताया — ऐसे कई मौक़े आए, जब  मुझे अकेले बाहर जाना पड़ा। कई बार तो मुझे देर शाम को भी अकेले बाहर जाना पड़ा, लेकिन मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई। बल्कि जहाँ तक औरतों का सवाल है, तो मुझे रूसी मर्दों का व्यवहार भारतीय मर्दों की तुलना में काफ़ी बेहतर ही लगा। रूस में मुझे एक बार भी छेड़खानी का सामना नहीं करना पड़ा। मुझे लगता है कि रूसी पुरुष भारतीय संस्कृति से परिचित हैं और भारतीय लड़कियों के प्रति उनका व्यवहार काफी शिष्ट व सौम्य रहता है। मेरा तो यह अनुमान है कि अधिकांश रूसी पुरुष बालीवुड, ख़ासकर ऐश्वर्या राय के कारण भारतीयों के प्रति प्रेम का भाव रखते हैं।

विदेश में डाक्टरी की पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों के लिए शायद सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि उन्हें भारत में प्रशिक्षु चिकित्सक बनने के लिए बेहद कठिन स्क्रीनिंग परीक्षा पास करनी पड़ती है। सब जानते हैं कि भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा आयोजित विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा को पास करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम होती है। अब रूस के अनेक विश्वविद्यालय ‘विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा’ के लिए भी अपने छात्रों की तैयारी कराने लगे हैं, जिससे ‘विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा’ में पास होने वाले उनके छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है। डॉ० प्रमित राय ने कहा — हालाँकि रूस का मौसम बहुत ही ठण्डा है, वहाँ की भाषा भी बड़ी मुश्किल है और पढ़ाई पूरी करने के बाद आपको बेहद मुश्किल ‘विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा’ भी पास करनी पड़ती है, लेकिन इसके बावजूद मैं नए छात्रों को रूस में पढ़ाई करने की सलाह दूँगा। जहाँ तक मेरा सवाल है, तो मुझे यदि रूस में फिर से पढ़ाई करने का मौक़ा मिले, तो मैं ज़रूर रूस जाऊँगा।

प्रसिद्ध रूसी बाल-कहानियों के हिन्दी अनुवादों की क़िताब का भारत में विमोचन

 

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