2016 में रूस-भारत सम्बन्ध : एक समीक्षा
राजनीतिक अवलोकन
विगत अक्टूबर में जब रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के साथ वार्षिक शिखर बातचीत करने के लिए गोवा पहुँचे तो गोवा के हरे-भरे परिवेश में दो देशों के आपसी रिश्ते भी अपने शिखर पर दिखाई दिए। इस मुलाक़ात में रक्षा, परमाणु ऊर्जा, अन्तरिक्ष और ऊर्जा सुरक्षा के पारम्परिक सहयोग क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि आर्थिक सम्बन्धों की दृष्टि से भी दो देशों के आपसी रिश्तों को ऊँचा उठाने की कोशिश की गई।
रूस और भारत न केवल वैश्विक शान्ति और स्थिरता की स्थापना के लिए आपस में सहयोग कर रहे हैं, बल्कि वे अपने आर्थिक सम्बन्धों का भी सतत विकास करने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों देश अपने यहाँ और दुनिया भर में शान्ति और सुरक्षा को बढ़ावा देने, समावेशी और पारदर्शी वैश्विक प्रशासन को मज़बूत बनाने और साझा हित में वैश्विक नेतृत्व के नए अवसर उपलब्ध कराने के लिए आपस में सहयोग करते रहेंगे।
सैन्याभ्यास ’इन्द्र-नेवी-2016’
2016 के लिए अपनी विदेश नीति की अवधारणा प्रस्तुत करते हुए रूस का कहना था कि रूस अपनी विदेश नीति में भारत के साथ अपनी ऐतिहासिक दोस्ती और गहरे आपसी विश्वास को प्राथमिकता देता है। इसलिए वह भारत के साथ अपने विशेष सहयोग को मजबूत बनाने और उसका आगे विकास करने के लिए प्रतिबद्ध है। मुख्य रूप से व्यापार और अर्थव्यवस्था में दीर्घकालीन सहयोग से जुड़े कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने और दो देशों के बीच पारस्परिक रूप से लाभप्रद रिश्तों का सभी दिशाओं में विकास करने की ओर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
अपनी गोवा वार्ता के बाद व्लदीमिर पूतिन और नरेन्द्र मोदी ने दो देशों के बीच कुल 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किए और रक्षा सहयोग से जुड़े कुछ ऐसे मुद्दों पर बातचीत की जो काफ़ी समय से लम्बित पड़े हुए थे। दोनों नेताओं ने एस-400 त्रिऊम्फ़ वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की ख़रीद से जुड़ा एक अन्तर-सरकारी समझौता भी किया। इसके अलावा उन्होंने ऊर्जा सुरक्षा, परमाणु मुद्दों, साइबर सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग से जुड़े सवालों पर भी विस्तार से विचार-विमर्श किया।
रूस के साथ रिश्ते भारत की विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। दो देशों के बीच विशेष और प्राथमिकता प्राप्त सहयोग के अलावा भी राजनीतिक और सरकारी स्तर पर अनेक मंचों पर सहयोग हो रहा है। इस सहयोग के सिलसिले में भी दो देशों के अधिकारी एक-दूसरे के नियमित सम्पपर्रक में रहते हैं।
सुरक्षा सम्बन्ध
रूस-भारत शिखर वार्ता के दौरान अनेक रक्षा सौदों पर भी हस्ताक्षर किए गए, जिनमें सबसे अहम सौदा रहा — एस-400 वायु सुरक्षा मिसाइल व्यवस्था की ख़रीद-फ़रोख्त से जुड़े अनुबन्ध पर हस्ताक्षर। दो देशों ने केए-226 टी ( यानी ’कामोव’) हैलिकाप्टरों का सँयुक्त रूप से मिलकर उत्पादन करने के बारे में एक अन्य अनुबन्ध पर भी हस्ताक्षर किए। इसके अलावा भारत ने रूस से एडमिरल ग्रिगोरीविच-वर्ग के परियोजना 11356 के निर्देशित मिसाइलों और आलोपन तकनीक से लैस चार फ्रिगेट युद्धपोत ख़रीदने के बारे में भी एक अनुबन्ध किया।
एस-400 की ख़रीद करके भारत की हवाई प्रतिरक्षा क्षमता काफ़ी बढ़ जाएगा
इन सभी सौदों में हलके 'कामोव' हैलिकॉप्टरों का मिलकर उत्पादन करने के बारे में किया गया अनुबन्ध एक बेहद महत्वपूर्ण अनुबन्ध है। भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही 'मेक इन इण्डिया' नीति को इससे बहुत बढ़ावा मिलेगा। भारत शुरू में हलके कामोव केए-226 टी हैलिकॉप्टरों का रूस से आयात करेगा और फिर रूस की सहायता से इन हैलिकॉप्टरों का भारत में ही उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा।
भारत पूरी दुनिया में भारी हथियारों का एक प्रमुख आयातक देश है। आजकल भारत सोवियत युग में ख़रीदे गए अपने हथियारों का आधुनिकीकरण करवा रहा है और यह सौदा भी क़रीब-क़रीब 100 अरब डॉलर का है।
नवम्बर के शुरू में भारत के मीडिया ने यह ख़बर दी थी कि रक्षा मन्त्री मनोहर पर्रीकर की अध्यक्षता में हुई रक्षा ख़रीद परिषद की बैठक में यह तय किया गया है कि भारत रूस से 464 अभिनव टी-90एमएस टैंक ख़रीदेगा। यह टी-90 टैंक का ही नवीनतम मॉडल है। रूस से लायसेंस लेकर टी-90 टैंक का भारत में पहले ही उत्पादन किया जा रहा है। अब भारत 2 अरब डॉलर में रूस से 464 टैंक और ख़रीदना चाहता है। पिछले 15 साल में पूरी दुनिया में टैंकों का यह सबसे बड़ा सौदा होगा। इन टैंको का उत्पादन भी ’मेक इन इण्डिया’ नीति के तहत भारत में ही किया जाएगा।
ऊर्जा
सन् 2016 में ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में भी भारत-रूस सम्बन्ध एक नई ऊँचाई पर पहुँच गए। रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन और भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अक्तूबर में कुडनकुलम एटमी बिजलीघर के पहले यूनिट को एक साथ राष्ट्र को समर्पित किया। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में रूस-भारत सहयोग लगातार विकसित हो रहा है। अब कुडनकुलम में रूस के सहयोग से पाँच अन्य यूनिटों का निर्माण भी शुरू कर दिया गया हैं।
उन्नत तक्नोलौजी देकर रूस भारत में एटम उद्योग का विकास करेगा
इससे पहले इसी साल दो देशों की तेल कम्पनियों ने क़रीब 4 अरब डॉलर के सौदे किए थे। भारतीय तेल कम्पनियों ने रूसी तेल कम्पनी रोसनेफ़्त के साइबेरिया स्थित एक तेल भण्डार का क़रीब-क़रीब आधा हिस्सा ख़रीद लिया है। इस तरह भारत और रूस के बीच सोवियत युग में जो सामरिक सम्बन्ध बने थे, अब उनका वाणिज्यिक स्तर पर विकास हो रहा है।
इण्डियन ऑयल, ऑयल इण्डिया और बीपीसीएल की एक इकाई ने 1.3 अरब डॉलर देकर पूर्वी साइबेरिया में तास-यूर्याख़ तेल भण्डार की 29.9 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीद ली है। इसके अलावा इन कम्पनियों के समूह ने 2 अरब डॉलर लगाकर रूस के वनकोर तेल भण्डार की 24 प्रतिशत हिस्सेदारी भी ख़रीद ली है। इन कम्पनियों ने भविष्य के पूंजीगत खर्च के अपने हिस्से के रूप में रूस को अलग से 18 करोड़ डॉलर का भुगतान किया है। ओएनजीसी विदेश और ओएनजीसी की एक विदेशी शाखा ने भी साढ़े 92 करोड़ डॉलर में वनकोर तेल भण्डार की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीदी है।
गोवा शिखर वार्ता के बाद, रूसी कम्पनी रोसनेफ़्त के नेतृत्व में एक कम्पनी समूह ने साढ़े पाँच अरब डॉलर में भारतीय तेल कम्पनी एस्सार ऑयल के तेल शोधन कारख़ाने को ख़रीदने के बारे में एक अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए हैं।
दोनों नेताओं ने भारत में स्मार्ट सिटी शहरों के विकास, परिवहन, जहाज़ निर्माण, आन्ध्र प्रदेश में रेलवे लाइन के निर्माण और तेल व गैस क्षेत्रों के विकास के बारे में कुछ विज्ञप्तियों और प्रारम्भिक समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए हैं।
कश्मीर पर सौवाँ वीटो लगाकर रूस ने पश्चिम की हवा निकाल दी थी